Friday, May 6, 2011

सुन रहे हैं प्रधानमंत्री जी?

अमेरिका ने पाकिस्तान में घुसकर अपने सबसे बड़े दुश्मन ओसामा बिन लादेन को मार गिराया. इस मौके पर भारत के प्रधानमंत्री परम प्रसन्न मुद्रा में दिखे. रामानंद सागर के रामजी की तरह मंद-मंद मुस्कुराते हुए उन्होंने अमेरिका के इस कृत्य की सराहना की. इसके अलावा उनका कोई ठोस बयान मुझे नज़र नहीं आया. आपको आया क्या?
अमेरिका की आज दुनिया में जो स्तिथि है ठीक वैसी ही स्तिथि भारत की भारतीय उपमहाद्वीप में है. चीन भी शक्तिशाली राष्ट्र है पर उसका बाकी देशों की संस्कृति पर वैसा प्रभाव नहीं जैसा भारत का है. ऐसे में पड़ोस में इतनी बड़ी घटना घट गयी और भारत जैसा शक्तिशाली राष्ट्र चुप है, यह बात कुछ हज़म नहीं हो रही. अमेरिका ने यह दावा किया है कि पाकिस्तान को इस ऑपरेशन की कोई जानकारी नहीं थी. ऐसे में तो इसे एक संप्रभु राष्ट्र पर हमला माना जाना चाहिये. कश्मीर मामले में सदा से बिन माँगे प्रवचन करने वाले अमेरिका के इस कृत्य की भारत को कड़ी आलोचना करनी चाहिये थी. मैंने शांति से दो दिन इंतज़ार किया कि शायद कोई बुद्धिजीवी इस बिंदु को उठाये पर सभी लादेन की मौत का जश्न मनाने में व्यस्त हैं. क्यों भूल जाते हैं कि आज अगर पाकिस्तान भारत की छाती पर मूंग दलता तो केवल अमेरिका की शह पर, वरना उसमें इतना दम नहीं कि भारत से दुश्मनी मोल ले. ऐसे में क्या अमेरिका पाकिस्तान पर दबाव नहीं बना सकता था कि वह लादेन को उसे सौंपे, या पकडवाने में मदद करे? सम्भावना है कि ऐसा ही हुआ हो. पर अमेरिका का खुलेआम ऐलान कि उसने लादेन को बिना पाकिस्तान को बताये पाकिस्तान में घुस कर मारा है उसका तानाशाही रवैया ही दिखा रहा है. यह काफी था भारत द्वारा आलोचना करने के लिये. मुझे लगता है कि भारत की विदेश नीति में व्यापक सुधार की आवश्यकता है. आखिर क्यों हम हर मौका अपने हाथ से यूँ ही फिसल जाने देते हैं? कश्मीर मसले पर अमेरिका की दखलंदाजी का जवाब देने का यह एक अच्छा अवसर था जिसे भारत ने लगभग खो दिया. भारत तो अमेरिका के दान पर नहीं पलता, तब हम क्यों कायरों की तरह मुँह दबाकर बैठे हैं? क्यों खुलकर आलोचना नहीं करते इस हमले की? या फिर क्यों नहीं खुलकर कहते कि अब हम भी यही करेंगे, आप कृपया दूर से देखें?

15 comments:

  1. ye rajniti hai sab aapni aapni roti sek rahe hai

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  2. Aaj ke Mantrion ko sharam aani chaahiye, aap ek saadhvi hoke bhi rajnaitik shreshth samaj de rahe ho, dhanyawad...
    Jay Shri Ram
    Jay Hanuman

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  3. एकदम सटीक आलेख ...... समय पर कदम उठाये जाएँ यह ज़रूरी है.....

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  4. वेल, मुझे लगता की इस बारे में आपकी जानकारी पूरी नहीं हँ..
    अमेरिका अब हर मामले में भारत का साथ देता हँ न की पाकिस्तान का...शीत युद्ध क दिनों में जब भारत का झुकाव रूस की तरफ था तब जरुर अमेरिका का स्टैंड भारत क लिए वात्च्फुल्ल था पर अब नहीं
    सिर्फ आतंकवाद की वजह से अमेरिका पाकिस्तान को तवज्जो देता हँ, क्योकि अगर पाकिस्तान कमजोर हुआ तो तमाम आतंकवादी गुट मजबूत हो जायेंगे और पाकिस्तान पर काबिज हो जायेंगे और उसके परमाणु हथियारों पर भी आतंकवादियों का कब्ज़ा हो जायेगा जो की न तो अमेरिका क लिए अच्छा होगा और न भारत क लिए
    इसीलिए पाकिस्तान का मजबूत रहना भारत क लिए भी ठीक ह और अमेरिका क लिए भी..
    कारगिल के बाद जब भारत और पाकिस्तान की सेनाये सीमा पर थी तब युद्ध बस इसीलिए नहीं हुआ था क्योकि पाकिस्तान क पास परमाणु बम था और पूरी पूरी संभावना थी की लड़ाई होने पर पाकिस्तान भारत क ऊपर परमाणु हमला कर सकता हँ
    और १ परमाणु बम से हमले का मतलब था की १ पूरे शहर का धमाके में तबाह होना और बाकि भारत का उस धमाके क radiation से तबाह होना
    इसलिए अब भविष्य में कभी भी भारत पाकिस्तान में युद्ध नहीं होगा, अगर होगा तो सिर्फ तब ,जब भारत रूस से किसी भी तरह के परमाणु हमले को नाकामयाब करने वाली अन्त्य बल्लेस्टिक मिस्सिले हासिल नहीं कर लेता , ये मिस्सिले हासिल करने के बाद भारत को पाकिस्तान क परमाणु हमले का डर नहीं रहेगा और तब भारत पाकिस्तान पर हमला कर सकता हँ
    और अमेरिका ne भी बस इसी वजह से पाकिस्तान पर हमला नहीं किया क्योकि अगर अमेरिका ne भी laden ,मुल्ला उमर, अलजवाहिरी की तलाश में अफगानिस्तान की तरह पाकिस्तान पर हमला किया होता तो डर था की पाकिस्तान आतंकवादियों को परमाणु बम से लेस कर देगा और आतंकवादी अमेरिका और यूरोप पर परमाणु बम से हमला जरुर करेंगे, इसीलिए आज भी अमेरिका पाकिस्तान को सिर्फ धमकाता हँ हमला नहीं करता
    चुनावों में बराक ओबामा यह कह कर चुनाव जीते थे की अमेरिका से मिलने वाली धन राशि का इस्तेमाल पाकिस्तान , भारत के खिलाफ कर रहा हँ परन्तु चुनाव जीतने पर उन्हें सब समझ में आ गया की उन्हें भारत की नहीं बल्कि अमेरिका की चिंता करनी हँ और अमेरिकी हित को देखते हुए उन्होंने पाकिस्तान को दी जाने वाली राशि चार गुना तक बढ़ा दीऔर इसकी वजह उन्होंने यह बतायी की अमेरिका का हित इसी में हँ
    और लास्ट १५ सालो से अमेरिका और भारत क रिश्ते इसलिए मजबूत हुए हँ क्योकि अब अमेरिका जानता हँ की १०० करोड़ की आबादी वाला भारत अमेरिकी कंपनियों क उत्पादों का बहुत बड़ा खरीद दार हो सकता हँ, means, भारत उनके लिए बहुत बड़ा बाजार हँ जहा से उनकी कंपनिया बहुत मोटी कमाई कर सकती हँ
    और दूसरा बड़ा कारण अमेरिका में रह रहे भारतीय ह जो दिनों दिन मजबूत हो रहे ह उन्होंने भारत और अमेरिका क रिश्तो को मजबूत करने में अहम् भूमिका निभायी हँ
    आज की स्थति में अमेरिका भारत क मुकाबले पाकिस्तान का साथ दे ही नहीं सकता और इसकी बहुत सी वजहे हँ
    आज इनफ़ोसिस, tcs , विप्रो, डॉ, रेड्डीज़, आईसीआईसीआई बैंक, बैंक ऑफ़ बरोदा, आदि बहुत सारी भारतीय कंपनिया अमेरिका में काम कर रही हँ और उनमे बहुत बहुत भारी तादाद में अमेरिकी लोग नौकरी करते हँ, मतलब भारतीयों की वजह से बेरोजगारी की समस्या से झूज रहे अमेरिका में भारतीय कंपनिया बहुत भारी तादाद में रोजगार उपलब्ध करवा रही हँ
    और अभी अपनी लास्ट विज़िट में ओबामा कुछ और भारतीय कंपनियों को अमेरिका में इन्वेस्ट करने का आग्रह करके उनके साथ कांट्रेक्ट कर गए जिससे जब ये कंपनिया अमेरिका में काम करना शुरू करेंगी तो बस इसी कांट्रेक्ट की वजह से वह के ५०,000 अमेरिकियों को नौकरी मिलेगी
    और कश्मीर मुद्दे पर भी अमेरिका भारत का ही पक्ष लेता हँ, पाकिस्तान अमेरिका से कहता हँ की कश्मीर मामले में हम दोनों देशो क बीच मध्यस्थता करो और भारत इसके खिलाफ हँ क्योकि ऐसा करने से भारत का पक्ष बेहद ही कमजोर हो जायेगा, अमेरिका भारत का पक्ष लेते हुए कहता हँ की कश्मीर मुद्दा दोनों देशो के बीच का मुद्दा हँ, बिना भारत क कहे हम इसमें दखल नहीं देंगे
    और अमेरिका के पाकिस्तान में घुसकर हमला करने से भारत को ख़ुशी होनी चाहिए क्योकि ऐसा करने भारत क लिए भी रास्ता खुल जाता हँ की वेह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चल रहे आतकवादी ट्रेनिंग केम्पो पर हमला करे या पाकिस्तान में घुसकर दाउद इब्राहीम, सरीखे लोगो पर भी कार्यवाही कर सकता हँ और तब अमेरिका को न चाहते हुए भी भारत का साथ देना ही होगा
    और भी बहुत कुछ लिख सकता हु पर उसकी जरूरत नहीं
    कुल मिलकर में आपके इस लेख से सहमत नहीं हु
    इस लेख में आपने तथ्यों की अनदेखी की हँ... ऐसा मुझे लगता हँ

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  5. एक जागरूक भारतीय होने के नाते आपका गुस्सा, चिंता और प्रतिक्रिया बेहद स्वाभाविक है. पर अंतररास्ट्रीय राजनीती कि कुछ मजबूरियां होती हैं. पूरा अंतररास्ट्रीय परिद्रश्य समझे बिना कोई भी कदम उठाना उचित नहीं होगा. श्री मनमोहन सिंह जी, बिना सोचे समझे ऐसा कोई बयां नहीं देना चाहेंगे, और न ही उन्हें देना चाहोये, जिसके दूरगामी परिणाम हमारे लिए ठीक न हो.

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  6. साध्वीजी, असल में भारत की स्थिति अमेरिका जैसी नहीं है, कहने में तो यह आसान लगता है कि पाकिसतान पर हमला बोल देना चाहिए, लेकिन अंतरराष्टीय परिद2श्य ऐसा नहीं कि हम आसानी से हमला कर सकें,

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  7. aap sahi kah rahi hain kintu pakistan jaise desh ke sath ek samprabhu jaise desh vala bartav nahi kiya ja sakta kyonki vah aatankvaad ko badhava deta hai.

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  8. I do agree with your good thoughts.

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  9. Ajay Ghai
    संगीनों , मिसाइलो से भी ज्यादा ताकतवर लोगो के इरादे होते है .ओसामा जैसे आतंकवादी को मारने के लिए अमेरिका का किसी भी सीमा तक जाना जायज था . उसे पाकिस्तान या अन्य किसी देश के नियम कानून के टूटने की चिंता भी नही थी .
    भारत के सभी धर्मो के अच्छे साधू, संत,गुरु आदि धार्मिक व्यक्तियों को धर्म उपदेशो के अलावा पमुख कामऔर उद्देश्य भारत की राजनीती को सुधारना है .मोक्ष के लिए चाहे इक जन्म बाद काम करे पर इतना तो कर ही लिया जाये की भारत विश्व का सर्वोत्तम शकिशाली देश हो .

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  10. मेरे लेख को समय देने के लिये आप सभी का आभार. आपके विचार मेरे लिये बहुत महत्वपूर्ण हैं.

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  11. shishir tewariMay 17, 2011 11:18 AM

    samprabhu rashtra ke daayitva bhi hain verna doctrine of hot pursuit anya rashtron ka adhikaar hai

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