पश्चिमी गोरेपन के प्रति प्रेम से हटकर उस परिवार में एक काला पिल्ला लाया गया था. शाम को कुत्ता टहलाना मानो उस कोलोनी का फैशन था. कितने ही हाथों में चेन से बंधा एक निरीह प्राणी होता, कभी आज्ञाकारी बच्चे की तरह साथ चलता और कभी अपने मालिक को घसीटता हुआ सा. उन सफ़ेद कुत्तों की भीड़ में वो कुछ वैसा ही लगता जैसे किसी गोरे गाल पर काला तिल. वो कुल ४० दिन का प्यारा सा गोलमटोल बच्चा था. उस परिवार में कुल तीन प्राणी थे. एक माँ, एक बेटा और एक ग्यारह साल की लड़की- यानि मैं. वो इतना छोटा था कि चेन बहुत भारी मालूम हुई अतः हटा दी गयी. वो हमारे पीछे लुढ़कता सा चलता और हर पांचवें मिनट किसी और के पीछे चल देता. तब शुरू होती उसे ढूंढने की कवायद. ये एक मुश्किल काम था क्योंकि उसे अपना नाम नहीं पता था, लिहाज़ा सीटी बजकर बुलाना पड़ता था और इसके लिए ज़रुरी था कि भैया को बुलाया जाये और भैया को बुलाने पर उनकी डांट खाना तो खैर लाज़मी था ही. उसे मेरी इस हालत पर दया आ गयी और उसने जल्दी ही अपना नाम सीख लिया. मैं बताना भूल गयी कि सर्वसम्मति से उसका नाम जैकी रखा गया था. जैकी के लिए ये जानना बहुत ज़रुरी था कि हम क्या खा रहे हैं. उसने कभी माँगा नहीं पर उसके खाने में हमारे खाने का कुछ अंश होना ज़रुरी था. अगर ऐसा ना हो या खाना उसे पसंद ना आये तो वो अपने बर्तन से लेकर रसोई तक बड़ी सफाई से उसकी एक लाइन बना देता, और मज़े की बात हमने कभी उसे ऐसा करते देखा नहीं. किचेन गार्डन से सब्जियां चुराना उसका प्रिय काम था, जिसके लिए उसे डांट पड़ती और कभी-२ छड़ी दिखाकर डराया भी जाता. नतीजतन बहुत दिन तक छड़ी तो क्या लकड़ी का टुकड़ा भी दूर तक नज़र नहीं आता. जाने कब वह मुँह में दबाकर उन्हें हमारी ज़द के बाहर छोड़ आता. मेरे घर में अकेला होने पर उसने मुझे कभी दरवाज़ा नहीं खोलने दिया. घंटी बजने पर वो दौड़ कर खिड़की पर खड़ा होकर पहले खुद देखता कि कौन है. घर में कोई मुझे डाँटता तो पलंग के नीचे घुस कर उस पर भौंकता. ऐसी ही ना जाने कितनी हरकते थीं कि लगता था वो खुद को घर का बच्चा ही मानता था, लेकिन मुझसे बड़ा बच्चा.
एक बार हमें कहीं बाहर जाना था. उसके खाने-पीने का इंतजाम कर उसे पड़ोसी के सुपुर्द कर हम चले गए. वापस आने पर पता चला कि दो दिन खाना नहीं खाया. यह उसके प्रेम कि पराकाष्ठा थी. बहुत दुःख हुआ और प्रण किया कि फिर कभी उसे अकेला नहीं छोड़ेंगे.
वो अब परिवार का अभिन्न अंग बन चुका था. एक दिन अचानक वो बीमार पड़ गया. उसने खाना-पीना छोड़ दिया. इंसान जहाँ बीमार होने पर आसमान सिर पर उठा लेते हैं वहीँ वह एक शांत योगी कि तरह चुपचाप लेटा था. उसे डॉक्टर के पास लेकर गए पर उस दिन दुर्भाग्य से रविवार था और डॉक्टर साहब को बैडमिंटन का मैच एक अदद कुत्ते कि जान से ज्यादा कीमती लगा. सोमवार के इंतज़ार में हम रात भर उसके मुँह में ग्लूकोस और इलेक्ट्रोल डालते रहे. पर उस दिन शायद ऊपर वाले के यहाँ छुट्टी नहीं थी. उन्होंने उसे अपने पास बुला लिया.
उसकी शरारतों पर उसे डांटना या अपने बचपने में उसे मारना अब भी मुझे अपराध बोध से भर जाता है. वो प्यारा सा बच्चा कुल पांच महीने ही रहा, पर उसकी याद आज बीस साल बाद भी पलकें गीली कर जाती है....
जिंदगी में ऐसे कई जैकी आते हैं, बस बात इतनी है कि हम कितनों को याद रख पाते हैं। जैकी की योनी बदल गई होगी। वह कुत्ते से आदमी हो गया होगा, मुझे उम्मीद है। क्योंकि उसे अब भी कोई पुण्यआत्मा याद करती है,उसका फल तो उसे मिलेगा ही।
ReplyDeleteआपकी खूबसूरत पोस्ट को ४-९-१० के चर्चा मंच पर सहेजा है.. आके देखेंगे क्या?
ReplyDeleteSabhi log ek musafir ki tarah hain yahan,bas kuch lamho ka sath rahta hai ek doosre ke sath..Kuch khatti meethi yaadon ke sath ye zindagi yun hi chalti rahti hai..
ReplyDeleteAJIT DWIVEDI..
Sabhi log ek musafir ki tarah hain,ek doosre ka sath bas kuch lamho ka hi rahta hai,aisi hi chand khatti meethi yaadon ke sahare zindagi yun hi chalti rahti hai..
ReplyDeleteZindagi aisi hi khatti meethi yaadon ke sath gujarti rahti hai..Hum sab ek musafir ki tarah hain jo bas kuch lamho ke liye ek doosre ke sath rahte hain..
ReplyDeleteअपने भावों को बखूबी व्यक्त किया है। वैसे भी आज के समय में जहां इंसानों से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती अब भी जानवर प्यार समझते हैं। प्यार के बदले प्यार देते हैं...नफरत या धोखा नहीं
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
यही इंसानियत है
ReplyDeleteअपने भावों को बखूबी व्यक्त किया है। धन्यवाद|
ReplyDeleteबिलकुल ही ऎसी एक प्रेमकथा मेरे पास भी है. कभी सुनाऊँगा. अभी यादों में हूँ. आपने अँसुआ दिया.
ReplyDeleteजीवन में जो हमारी जिंदगी में आता है उसकी यादे हमेशा संग रहती है .
ReplyDeleteHARI OM. IMPRESSIVE BLOG.
ReplyDeleteप्रेम पैदा होता है प्रेम से ; हमेशा देखा गया है कि कुत्तों में इंसान से प्रेम करने कि भावना इंसानों से ज्यादा रही है . उसके इस प्रेम को इंसान नाम दे देता है स्वामिभक्ति . आपकी कहानी मार्मिक है ..
ReplyDeleteइस प्रोत्साहन हेतु आप सभी का आभार
ReplyDeletesadhvi ji..kamaal ka likha hai1
ReplyDeleteBAHUT KHUB LIKHA HAI AAPNE...
ReplyDeleteBLOG JAGAT MEIN AAPKA SWAGAT HAI...
KABHI MERE BLOG PAR BHI PADHAREIN...
bada samvedansheel man paaya hai aapne.prabhu aapko chiraayu kare
ReplyDelete