इतने दिन से जिस समय संध्या की आदत थी उसी समय निकली तो आसमान में रौशनी थी, नित्य की भांति नीम अँधेरा नहीं था। फर्श पर नंगे पांव रखने पर रोज़ की तरह ऐसा नहीं लगा कि बर्फ की सिल्ली पर चल रही हूँ। चौबीस घंटे में मौसम में बहुत बदलाव आ गया था। प्रकृति के कैलेंडर के आगे दुनिया के सारे कैलेंडर बौने हैं। यह सिर्फ मनुष्य के लिये ही नहीं है, बल्कि सभी जीवों के लिये है। दुनिया में जो कुछ भी ऊर्जा से संचालित है उसे पता है कि मकर संक्रांति आ गयी है। उसे पता है कि सूर्यदेव उत्तरायण हो गये हैं। उसे पता है कि सूर्यदेव का तेज बढ़ गया है। समय के चक्र के साथ घूमती प्रकृति हर पड़ाव पर अपने नियत समय पर पहुँच जाती है। ईश्वर से प्रार्थना है कि हम भी प्रकृति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें। ऐसा हुआ तो सब कुछ लय में होगा, सब संगीतमय होगा, सब सुंदर होगा। आज सूर्यदेव से प्रार्थना है कि अपने तेज से धरती को इसी प्रकार जीवन देते रहें। ऊर्जा के उस पुंज को कोटि-कोटि प्रणाम। उन पूर्वजों को प्रणाम जिन्होंने इस सत्य कि खोज की और मकर सक्रांति को पर्व के रूप में स्थापित किया।
एक निवेदन – इस दिन ‘Happy Makar Sakranti’ बोलकर छुट्टी न पायें। मकर सक्रांति को उसके पारंपरिक रूप में ही मनाना सार्थक होगा। नदी स्नान न कर पायें तो भी सुबह जल में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान करें। उसके पश्चात् सूर्य को अर्घ्य दें। एकादशी है, खिचड़ी तो बना-खा नहीं पायेंगे पर दान अवश्य करें। तिल और गुड़ से मुँह मीठा करें। आप सभी का जीवन ऊर्जा से भरा हो यही प्रार्थना है।
आपकी यह संदेशगामी ब्लाग लेख हमे नयी प्रेरण दे रही है, जिनता सम्भव होगा हम पूरा प्रयास करेगे कि आपके द्वारा बताये गये तरीके से पर्व को मानाऍं और आनंदित हो।
ReplyDeleteसभी को मकरसंक्रन्ति पर्व की बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाऍं
प्रमेन्द्र प्रताप सिंह
बहुत बहुत धन्यवाद प्रमेन्द्र जी
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति पर अनेकों शुभकामनायें !!!
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश जी, आपको भी अनेक शुभकामनायें
ReplyDeleteदेवताओं का दिन प्रारम्भ होने वाले इस मकर संक्रान्ति महापर्व पर अनेकों शुभकामनायें !
ReplyDeleteBeautifully put in a proper prespective keping th esence of Sankrant intact
ReplyDeleteBibhash
Thanks Bibhash ji, Anonymous friend, and Roopesh ji for giving your valuable time to this write up. God bless.
ReplyDeleteसूर्य के उदित और अस्त होने की गति से अनुशासित जीवन ऊर्जा और गति से भर जाता यह एक अनुभूत सत्य है ... चिरकाल से भारतीय मनीषियों ने यह जान कर जीवन में उतार लिया है ... आपका लेख अच्छा लगा...
ReplyDeletesundar vichar thanks !!
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