एक परिचित मिले। मैंने आदतन उनका हाल पूछा। पूछते ही लगा मानो बर्र का छत्ता छेड़ दिया हो। वो बेचारे कुछ दुखी होकर और बहुत बिफर कर अपनी आप बीती सुनाने लगे।
“ मेरे पेट में बहुत दर्द था। मैं मोहल्ले के डॉक्टर के पास गया। उन्होंने कहा इंजेक्शन लगाना होगा। मैं कुछ डरे मन से मान गया। उन्होंने इंजेक्शन लगाकर अपनी फीस ले ली तो मैंने पूछा, अब मैं घर जाऊँ ? डॉक्टर साहब ने कहा नहीं, कुछ देर यहीं आराम कीजिये। इंजेक्शन का असर देख लूँ तो चले जाइयेगा। मैं आराम से लेट गया। कुछ नामुरादों ने जाने क्या सोच कर मोहल्ले में खबर फैला दी कि सुरेश भाई जी अस्पताल में भर्ती हैं। आनन-फानन में अस्पताल के निकट रहने वाले एक मेरे परिचित वहाँ पहुँचे और पहुंचते ही डॉक्टर साहब से किसी दरोगा की तरह सवाल किया, “आपने ई सी जी किया कि नहीं?” नहीं किया! अरे! कैसे डॉक्टर हैं आप? जान लेंगे क्या हमारे भाई साहब की? डॉक्टर साहब ने कुछ घबराते हुए तुरंत ई सी जी निकाला। एक तो मैं पेट दर्द से बेहाल था, ऊपर से इंजेक्शन का भी असर रहा होगा। ऐसे में ई सी जी को तो गडबड आना ही था और वो गडबड ही आया। अब मैं मरीज़ की भूमिका में आ गया और मेरे लिये बोलने की मनाही हो गयी। मुझे बड़े शहर ले जाया गया, जहाँ मेरी एन्जियोग्राफी की गयी। उसमें बताया गया कि मेरी एक आर्टरी ब्लॉक है और अब एन्जियोप्लास्टी करना काफी ज़रुरी हो गया है। मैं घबराया। अब कमान अपने हाथ में लेना ज़रुरी हो गया था। मैंने कहा आप लोग कृपया रुक जाइये और मेरी बात सुनिए। मैं कुछ बोल पाता उससे पहले ही मेरे रिश्ते के भतीजे का फोन आ गया। चाचाजी आप वहाँ क्या कर रहे हैं? पहली गाडी पकड़िये और दिल्ली चले जाइये। मैंने वहाँ सब इंतजाम करवा दिया है। मुझे एक बार फिर बोलना मना हो गया और मेरे घर वाले रोते-धोते मुझे कुछ यों लेकर चले मानो आखिरी यात्रा पर लेकर जा रहे हों। दिल्ली पहुँचने पर शुरू हुआ जाँचों का सिलसिला। पैसा पानी की तरह बहने लगा। दिन में कई बार भावहीन चेहरे वाली नर्सें आतीं और बाजू में सुई कोंचकर खून निकाल ले जातीं। कभी हमें किसी मशीन में धकेला जाता तो कभी सीने पर अजब-गजब यंत्र चिपका दिये जाते। बिल जब पचास हजार के ऊपर पहुँच गया और किसी को कुछ भी समझ नहीं आया तो मैंने ज़बान खोलने की एक और कोशिश की। “डॉक्टर साहब मेरे सीने में नहीं पेट में दर्द हुआ था जिसके लिये मैं डॉक्टर से दवा लेने गया था। वो तो ठीक भी हो गया, आप कहें तो मैं जाऊँ। डॉक्टर ने कुछ घूरकर मेरी और देखा और पूछा, सीने में दर्द नहीं हुआ कभी? चक्कर आया था क्या? ब्लड प्रैशर हाई तो नहीं रहता?” सभी सवालों का नकारात्मक उत्तर सुन वे सोच में पड़ गये। कुछ देर सोचकर बोले, तब तो पहले की सब जांचें बेकार हो गयीं। अब नए सिरे से पेट की जाँच शुरू करनी पड़ेगी। यह सुनते ही मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी। मैंने अपनी पत्नी के आगे हाथ जोड़े और उसे वहाँ से चलने के लिये मनाया। भतीजे के भरोसे कागज़ी खानापूर्ति छोड़ मैं अगले ही दिन वहाँ से भाग आया। लेकिन शनि की साढ़ेसती ने अभी भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा था। मेरे मोहल्ले में खबर फ़ैल चुकी थी कि यहाँ के डॉक्टरों ने भाई साहब को जवाब दे दिया है। बड़े शहर के डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। बचना मुश्किल है। घरवाले दिल्ली लेकर गये हैं। एक साहब ने जिंदगी में सिर्फ दो एक्सीडेंट देखे थे जिनमे मरीज़ का ऑपरेशन करके उसे रॉड लगायी गयी थी, सो उन्हे वही दिखा। मेरे लिये भी कह दिया कि भाई साहब की हालत गंभीर है और उन्हें तो हार्ट में रोड लगायी गयी है। जैसे वे बताने वाले वैसे ही सुनने वाले। घर आते ही शुरू हुआ देखने आने वालों का सिलसिला। दिनभर में ५० लोग कम से कम आकर चाय पी जाते। “भाई साहब रॉड कहाँ लगी? हार्ट प्रॉब्लम कैसे हो गयी आपको? आप तो स्वस्थ लगते थे?” जैसे सवालों का जवाब देते-देते सिर भन्ना जाता। ऊपर से पत्नी लाल-लाल आँखों से घूरती मानो कह रही हो तुम्हारे पेट दर्द कि हाय-हाय का नतीजा है यह। एक हफ्ता इसे झेलने के बाद मैं लोगों से मिलने से बचने लगा, जिसे बीमारी के बाद का चिडचिडापन समझा गया। खैर! मुझे इससे कुछ रहत हुई। दिल की बीमारी न पहले कभी थी और न ही बाद में उसका कुछ असर दिखा। जिंदगी अपने पुराने ढर्रे पर सुख से गुज़रने लगी। पर वो समय किसी बुरे सपने की तरह आज भी डरा जाता है।
अब तो यही कहूँगा कि किसी को कोसना हो तो आपको कोई लंबी-चौड़ी बात कहने की ज़रूरत नहीं। बस इतना भर कह दीजिये – दुश्मन! जा, तेरे पेट में दर्द हो।“
मैंने उनकी आपबीती सुनी और दोनों हाथ जोड़कर ईश्वर को प्रणाम किया। हे भगवान! कभी किसी को पेट में दर्द न हो।
बरबस ही परसाईं जी की "बीमार होने के फ़ायदे" याद आ गयी। स्वाभाविक तौर पर उनकी कृति उस समय के जन मानस को दर्शाती है और आपकी यह रचना आज की वस्तु स्थिति है। लोग कहते हैं न, 'छू' करके आजा और फ़िर तमाशा देख। ये 'छू' करना वास्तव मे किसी कुत्ते को किसी के पीछे दौडा देना, और फ़िर दृश्य का आनन्द लेना....ये 'छू' करवाने का भूत आज सामान रूप से हम सभी मे वास कर रहा है...बस उसकी activity की degree मे फ़र्क है।।
ReplyDeleteरचना के लिये बधाई !!
बहुत-बहुत धन्यवाद रूपेश जी
ReplyDeletePlease keep in touch.
ReplyDeleteI am impressed by your deep thoughts.
Thank you.
With regards
Brij Lal
शायद येही आज की वस्तुस्थिति है !! लोग का दिल कम दिमाग जादा कम करने लगा है... अत्यंत प्रेरक और गुदगुदाते हुए झकझोर देने वाला लेख है....अनंत धन्यवाद !!
ReplyDeleteBahut Sundar . Vastavik sthiti yahee hai .Andar ki samajh naheen hai , keval paisa kamana sab ka lakshya ho gaya hai .
ReplyDeletewriting in hindi is really a tough job..great.. command on the theme flawless and sporty..select some uncommon subject which suits your real personality..we expect some thing differnt from her highness
ReplyDeletemai sirf ek baat kahunga "zabardast"
ReplyDeletewaise mai vyangya me haarishankar parsai ko hi padta hu par aapka ye zabardast hai
I am waiting for the next
आपका ब्लॉग देखा ....अत्यंत खुशी हुई....और उससे भी अच्छा लगा आपकी रोचक और ज्ञान वर्धक लेखनी पड़ कर....हमारी बहुत बहुत शुभकामनायें....ऐसे ही ज्ञान बाँटती रहे.............
ReplyDeleteMujhe to bahut hansi aa rahi hai,,,,hehehhe
ReplyDeletebhala ho us padhosi ka jisane tatkal akar doctor shaheb se jankari le li.
sach me ajki byatha yahi hai.
bahut hi sunder lekh
badhai swikare.