Sunday, May 20, 2012

धन का धाम है अक्षरधाम

पिछले दिनों दिल्ली प्रवास पर थी। बीच में समय मिला तो बहुचर्चित अक्षरधाम मंदिर दर्शन का मन बनाया। भव्य इमारत और मंदिर का शिल्प मनभावन था। जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए वैसे-वैसे मंदिर की भव्यता में डूबते गए। सुरक्षा चौकस थी। हर ओर सफाई और अनुशासन की छाप थी। मंदिरॉ में जैसे आमतौर पर प्रसाद और कुचले फूलों के ढेर पड़े दिख जाते हैं उनका यहाँ नितांत अभाव था। चलते हुए मुख्य प्रवेश द्वार तक आ गए। वहाँ एक फॉर्म भरकर अपना सामान जमा कराना था। अंदर मोबाइल, कैमरा, खाने-पीने की वस्तुए ले जाना मना था। यह भी ठीक ही लगा। मंदिर में खाना-पीना सही नहीं है, शुचिता से ही जाना चाहिए। सुरक्षा व्यवस्था से गुजरना एक लंबी प्रक्रिया थी। सब औपचारिकतायेँ पूरी करके हम मंदिर के अंदर पहुँचे। सामने ही किताबों की एक स्टाल दिखी। मंदिर और संस्थापक पर अनेक पुस्तकें वहाँ उपलब्ध थी। काउंटर पर सामने ही एक ढेर के रूप मंदिर की संक्षिप्त जानकारी देते हुए पैम्फलेट दिखे। यह जानकर बड़ी हैरानी हुई कि अक्सर मुफ्त में बाँटा जाने वाला वह पैम्फलेट भी दस रुपये का था। खैर, हम और आगे बढ़े। मुख्य मंदिर भव्यता का मानो चरम ही था। स्वामी नारायण की प्रतिमा के अतिरिक्त राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण आदि प्रतिमाएँ भी थीं जो हर प्रकार से मन को मोह लेने वाले आभूषणों से सजी थी। उस एक मंदिर के अतिरिक्त पूरे परिसर में कहीं भी, कोई भी ईश प्रतिमा नहीं दिखी। केवल मंदिर का शिल्प ही था जो वहाँ रोके हुए था। कुछ और आगे बढ़े तो सामने ही कैंटीन दिखाई दी। अब फिर हैरानी हुई। खाने-पीने की सामग्री अंदर ले जाना मना था पर अंदर इसे बेचना और खरीद कर खाना मना नहीं था! और फिर खाद्य सामग्री भी क्या थी, पेस्ट्री, सैंडविच, बर्गर, कॉफी और कोल्ड ड्रिंक। हमारे जैसे ‘देसियों’के लिए तो वहाँ खाने लायक कुछ भी नहीं था। मजबूरी थी, क्या करते। बर्गर, पिज्जा आदि के साथ कोल्ड ड्रिंक लेना अनिवार्य था। काफी मशक्कत के बाद किसी तरह दो कॉफी और एक उपमा का पैकेट लिया जिसकी कीमत थी लगभग 150 रुपये। किसी प्रकार निगल लेने लायक उस सामग्री को खाकर हम उठे तो आगे एक साहब कैमरा लगाए दिखे। वहाँ आप अपना यादगार चित्र खिंचवा सकते थे। फोटोग्राफी मना थी पर सिर्फ अपने कैमरे से। वहाँ पैसे देकर फोटो खिंचवाना मना नहीं था। एक फोटो के 130 रुपये लेकर हमें एक रसीद दी गयी जिसे दिखाकर हम फोटो प्राप्त कर सकते थे। जहां से फोटो मिलनी थी वहाँ पहुँचे तो वह एक अलग ही संसार था। स्वामी नारायण माला, स्वामी नारायण अचार, शहद, टी शर्ट, साबुन और भी न जाने क्या-क्या। इस कॉम्प्लेक्स के बाहर पॉप्कॉर्न, कॉफी आइसक्रीम आदि ठीक वैसे ही बिक रहे थे जैसे किसी सिनेमा हाल में बिकते हैं। मंदिर परिसर में चलने वाले संगीतमय फव्वारे का बहुत नाम सुना था। उसके चलने का निर्धारित समय था पर, उस पर भी टिकट था। बिना टिकट उस ओर जाना भी मना था। अब तो चिंता होने लगी थी। हम चलते हुए जाने कितने पेड़ों और मूर्तियों को निहारते आए थे। कौन जाने कहीं आगे चलकर उसका भी पैसा वसूल लिया जाये। एक खास बात जो शुरू में बताना भूल गयी थी। वहाँ जाने क्यों किसी के भी चेहरे पर मुझे भक्ति भाव नहीं दिखा। अधिकांश चेहरे पर्यटक का सा भाव लिए थे। जहां-तहां लोग उसी अंदाज़ में बैठे थे जैसे अक्सर किसी उद्यान में बैठे दिख जाते हैं और अंत में बाहर निकलते हुए उसका कारण समझ आ गया था। जिस धाम में ईश्वर कम और दुकानें ज़्यादा हों वहाँ भक्ति भाव कैसे आएगा, क्यों आएगा? भव्यता लिए उस इमारत में जय माँ, हर-हर महादेव या नारायण-नारायण का उदघोष नहीं था, वह अंध भक्ति नहीं थी जिसके वशीभूत हो पसीने में तर-बतर लोग भूख-प्यास भूलकर घंटों दर्शन की प्रतीक्षा करते हैं। वहाँ हर चीज़ बिकाऊ थी। चारों और पैसे का साम्राज्य था। पैसे से सब कुछ और कुछ भी खरीदने की ताकत रखने वाले धनपतियों की आस्था भी सुविधा ही देखती है। वे मंदिर भी तभी जाएंगे जब पाँव गंदे न हों और इन बातों का वहाँ भरपूर ध्यान रखा गया था। साधारण व्यक्ति के लिए तो वहाँ घंटों धूप में चलने और भूखे रहने के सिवा कोई चारा नहीं। सत्तू या अचार-पूरी साथ बांधकर तीर्थ करने जाने वालों के लिए नहीं है यह ‘धाम’। गौतम संदेश के 17-23 मई अंक में प्रकाशित मेरा लेख

3 comments:

  1. article likhna aasan he ... ek akhshardam bana lo or jo aap ne likha he us ka amal us par kato to pata chal jayega....... chalo ek nahi aadha hi akshardham bana do...

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  2. i jsut saw a movie , omg , and film was very correct ,film me shiksha bahut achchi he bhagvaan he is baat ko bhi sundar dhang se prastut karti he,bhkton ko bhagvaan se prem karne ki jarurat he , darne ki nahi , sath hi andh vishvaason se bachna bhi jaruri he aur dharma ko business nahi banane dena he . ye sabhi sundar sandesh he.
    galti hamari he jo hum aisi jagah jaate hen vahan bhagvaan to milne se rahe, han kisi hindu ke liye aise dham garva ka vishaya ho sakte hen , vo bhi kahlega hamne jamane ke hisaab se chalna seekh liya he. ha ha ha.
    jay shri krishna.

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  3. यहि वो पाप था आप का जिस के तिन हप्ते बाद हि आप अखबारो मै प्रमुख स्थान मे बनि रहि । यह झुठ कुदरत सहन नहि कर पाइ और आप का ग्रुहस्थ जिवन लोगो कि हासि का पात्र बना । प्रायस्चित कर के अपने पापो को धोने का मोका लेना चहिये ।
    आप से बिनति है इर्शा से भरे एसे गलत लेख मत लिखिये । वो मन्दिर सन्तो और भक्तो कि निस्वार्थ सेवा से बना है। उसे आप कि इर्शा से दुसित मत किजिये
    जय श्री राम

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