Sunday, May 13, 2012

उनकी दुनिया की सबसे अच्छी बेटी वाकई में अच्छी बेटी बनना चाहती है....

उनकी नज़र में मैं दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की हूँ। उनके अनुसार मुझ सा ‘इंटेलिजेंट’ कोई नहीं। मेरी हर कमी उन्हें खूबी लगती है। मेरा लिखना, मेरा बोलना सब उनके लिए अनोखा है। कहती हैं, “दुनिया के बच्चे पैदा होने के जाने कितने दिन बाद मुसकुराते हैं, पर तू कुछ घंटे बाद ही खिलखिलाकर हँसती थी। इतनी नाज़ुक थी कि एक बार हाथ पर मिर्च का एक दाना छू भर गया था, तू घंटों लाल रही।” ऐसे संस्मरणों की उनके पास भरमार है। पढ़ते हुए आपको अपने और अपनों के जाने कितने बच्चे याद आ जाएंगे जो ऐसे ही थे, पर मेरी माँ के लिए दुनिया में मैं ही हूँ जो ऐसा करती थी। मेरा तुतलाकर समय-समय पर कुछ-कुछ बोलना उन्हें आज भी ऐसे याद है मानो कल ही की बात हो। जस का तस दोहरा भी देती हैं। इतनी प्यारी तो तुतलाते हुए मैं भी नहीं लगती होऊँगी जितनी अच्छी वे नकल उतारते हुए लगती हैं। बीच-बीच में उन्होने जब भी मुझे देखा, देखते ही कहा, तेरा रंग क्यों हल्का पड़ गया है, पिछली बार से कमजोर लग रही है। वो भी क्या करें, उनके मन में तो एक परी सी लड़की बसी रहती है जिससे सुंदर संसार में कोई और नहीं। उससे ज़रा भी कम नज़र आती हूँ तो परेशान हो जाती हैं। इसीलिए हर बार वही सवाल, वही चिंता। ऊपर लिखते हुए मैंने कहीं नहीं कहा कि मैं अपनी माँ के बारे में बात कर रही हूँ, पर फिर भी आप सब समझ गए होंगे, क्योंकि यह गुण सभी की माँ में होते हैं। यह शब्द, यह भाषा, यह प्रेम हर माँ की पहचान है। मेरा और माँ का रिश्ता कभी सहेली जैसा नहीं रहा। जिस आयु में रिश्ता दोस्ती के कगार पर पहुंचता है, उस आयु से पहले ही मैं घर छोड़ चुकी थी। फिर भी, जितना समय रही माँ से कभी पर्दा नहीं रहा। अपनी हर अच्छी-बुरी बात दिल खोलकर उन्हें बता देती और उनकी डांट भी खा लेती। उनकी टोकाटोकी से अक्सर झल्लाई सी ही रहती, पर अब उसका महत्व पता है। पेड़-पौधों और प्रकृति से लगाव मुझे उन्हीं की देन है। हर साल उनके साथ हरिद्वार जाती और गंगा के घाट पर घंटों बिताती, जिसका कहीं न कहीं उन्हें आज भी अफसोस है। घर के पीछे के ‘किचन गार्डन’ में समय बिताना उनका प्रिय शगल था। दिल्ली जैसी जगह में भी घर के चारों और फलों के और फूलों के पेड़ थे जिन पर धमाचौकड़ी मेरी सुनहरी यादों का हिस्सा है। घर के पेड़ के शहतूत का स्वाद ज़बान पर ऐसा चढ़ा कि आज बीसियों साल बाद भी बाज़ार से खरीदकर नहीं खा पायी हूँ। दो-एक बार खरीदे भी तो फेंकने ही पड़े। पढ़ने की आदत भी उन्हीं से लगी। दिन में कम से कम दो घंटे वे कुछ पढ़ते हुए ही बिताती थीं। पॉप्कॉर्न की दीवानी थी मैं, कोसों दूर भी पॉप्कॉर्न भुन रहे होते तो मेरी नाक को सिग्नल मिल जाता और माँ कभी बिना पॉप्कॉर्न लिए घर नहीं आयीं। स्कूल से आते ही बैग ले लेतीं और खाना लगातीं। उन्होने कभी मेरे बिना खाना नहीं खाया। आज जब बहुत से लोग तारीफ करते हैं कि आप बहुत अच्छा बोलती हैं, तो मन अनायास ही अतीत में चला जाता है। स्कूल में 26 जनवरी पर कार्यक्रम था। प्रिन्सिपल किसी छोटे बच्चे से कविता पाठ करवाना चाहती थी। उन्होने मुझे चुना तो मैं रोते हुए घर आई। सोच भी नहीं पा रही थी कि उन 1500 बच्चों के सामने कैसे बोलूँगी जिनमें दीदी-भैया लोग (सीनियर) भी होंगे। माँ ने चुप कराया और यह कविता ढूँढी – ‘लौटी फिर 26 जनवरी याद दिलाने आई, जिन वीरों ने देश की खातिर हंस कर गोली खाई’। मैंने याद करके उन्हें सुनाई और आईने के सामने रिहर्सल भी की। जिस दिन पाठ करना था माँ ने कहा, ऐसा समझना सब सिर्फ तुम्हें ही आता है और सामने बैठे लोग कुछ नहीं जानते, फिर डर नहीं लगेगा। नौ साल की उम्र थी, सामने अपार भीड़ दिख रही थी, दायें-बाएँ वो टीचर भी थीं जिन्हें क्लास में देखकर आत्मा कांपती थी। डर के मारे सामने का कुछ दिख नहीं रहा था। प्रिन्सिपल दायीं ओर खड़ी थीं और मैंने उन्हें संबोधित बाईं ओर सिर करके किया, यह देख कर सब हंस पड़े। खैर! माँ की बात याद रखी और कविता पाठ शुरू किया। शुरू करते ही चारों ओर सन्नाटा सा पसर गया और कुछ ही समय बाद उस सन्नाटे की जगह तालियों की गगनचुंबी गड़गड़ाहट ने ले ली। उसके बाद हजारों बार तालियाँ सुनी हैं, पर उस दिन जैसी कोई नहीं। वो गड़गड़ाहट आज भी मेरे कानों में गूँजती है। वो हजारों तालियाँ और उसके बाद के सभी गर्व के क्षण आज मैं अपनी माँ को समर्पित करती हूँ। मेरे जिन पलों ने उन्हें शर्मिंदा किया उनके लिए उनसे क्षमा मांगती हूँ। मेरी खुशी से बढ़कर उनके जीवन में कभी कुछ नहीं रहा। मेरे हर सही-गलत फैसले में उन्होने हमेशा मेरा साथ दिया है और इसके कारण सबकी नाराजगी भी मोल ली है। मुझे लगता है मैंने उन्हें कभी कोई सुख नहीं दिया। आज ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि मुझे आगे का जीवन ऐसा दे कि माँ के जीवन में मुझे लेकर केवल गर्व ही रह जाये। उनकी दुनिया की सबसे अच्छी बेटी वाकई में अच्छी बेटी बनना चाहती है, उनके सुख का कारण बनना चाहती है।

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