Sunday, May 6, 2012
काँग्रेस की गुगली पर सचिन हुए ‘क्लीन बोल्ड’
भारत में लगभग सभी का प्रिय शगल है चर्चा करना। आपको अक्सर जब-तब, जहाँ-तहाँ, ऐसे-वैसे लोग चर्चा करते मिल जाएंगे। मुद्दा कुछ भी हो सकता है। आजकल मुद्दा है, सचिन तेंदुलकर को राज्यसभा सदस्य बनाया जाना। देश की संवैधानिक प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति विभिन्न क्षेत्रों से 12 विशिष्ट लोगों को राज्यसभा के लिए नामित करते हैं और सचिन का खेल के लिए योगदान कौन नहीं जानता। यह एक जानी-समझी प्रक्रिया है और इसमें चर्चा लायक कुछ नहीं है। लेकिन आप शायद भारतवासियों को नहीं जानते, जानते हैं तो ठीक से नहीं जानते। यहाँ के लोग किसी भी बात को रबर की तरह खींचने में विशेष महारत रखते हैं। सचिन के साथ और भी दो लोगों को नामित किया गया, पर उन पर सब मौन है। क्यों न हों? इतने बड़े कमेरे थोड़े ही हैं कि सब विषय एक साथ खींच ले जाएँ, सो एक बार में एक ही। रेखा को एक बोलिए, वे चार सुना देंगी। औद्योगिक घराने से तो बहुतों की रसोई चलती है, गाड़ी चलती है, सो कौन पंगा ले। ऐसे में सबसे आसान‘टारगेट’सचिन ही हैं। सदा से शांत रहने वाले सचिन अपने खेल के प्रति इतने समर्पित हैं कि बाकी दुनिया से उन्हें कम ही सरोकार रहता है। विरोधियों को कभी जवाब दिया भी तो अपने बल्ले से। बल्ला मारकर नहीं जनाब, बल्ले से रन बनांकर। वही उनका काम है और उसे वे भली-भांति करते हैं। उनकी इसी बात पर कल तक दुनिया फिदा थी, पर आज सवाल उठाए जा रहे हैं कि वे संसद में क्या करेंगे? आश्चर्य है कि, रेखा राज्यसभा में क्या करेंगी, यह किसी ने नहीं पूछा। इससे पहले भी लता मंगेशकर और अन्य अनेक विभूतियाँ राज्यसभा सदस्य रही हैं। अधिकांश ने राज्यसभा की कार्यवाही में यदा-कदा ही भाग लिया। ऐसे में अकेले सचिन पर सवाल उठाना एक प्रकार से अन्याय ही लग रहा है। वह भी तब, जब लोगों में अपने चुने हुए सांसदों से सवाल पूछने की हिम्मत नहीं है। कोई अपने या आपके सम्मान के लिए जवाब नहीं दे रहा तो इसका यह अर्थ नहीं कि आप कुछ भी कहते जाएँ।
ऐसे सभी शब्दवीरों को यह पता होना चाहिए कि राज्यसभा में नामित होना एक सम्मान है। इस सम्मान का अधिकारी व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में किए गए काम से बनता है कुछ लोग इसे काँग्रेस की घटिया राजनीति बता रहे हैं। उन्हें डर है कि ऐसा करके काँग्रेस ने सचिन को पार्टी से जोड़ लिया है। ऐसा कहने वालों को यह समझना चाहिए कि, यह नामांकन राष्ट्रपति करते हैं न कि कोई पार्टी। किसी की भी सरकार हो, विशिष्ट लोगों को सम्मानित करने का सिलसिला चलता रहता है। गणतन्त्र दिवस पर जाने किस-किस क्षेत्र के लोग सम्मानित होते हैं, तो क्या वे सभी उस पार्टी के सदस्य बन जाते हैं, जिसके शासन में वे सम्मानित हुए? जहां तक मैं समझती हूँ, सचिन का कद इस सम्मान से कहीं बड़ा है। उनके उसी कद के कारण बाकी पार्टियां सकते में हैं और असुरक्षित महसूस कर रही हैं कि कहीं सचिन कॉंग्रेस के नेता न बन जाएँ। उनके इस डर का कारण सचिन का असर ही है, पर सचिन क्रिकेट को समर्पित हैं। यह नामांकन उनपर कोई एहसान नहीं जिसको उतारने के लिए वे किसी पार्टी से जुड़ें। असल में जिस सम्मान के वे अधिकारी थे, उसका तो यह पासंग भी नहीं। जाने कब से सचिन का जादू हर क्रिकेट प्रेमी के सिर चढ़ कर बोल रहा है। पिछले कुछ समय से तो वे भी सचिन के मुरीद बन गए हैं जिनकी क्रिकेट में कोई रुचि नहीं। एक जगह से जो उन्हें भारत रत्न देने की मांग शुरू हुई, वह संक्रमण की भांति पूरे देश में फैल गयी। देश के कोने-कोने से उन्हें भारत रत्न देने की मांग उठने लगी। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इस मांग को लेकर पेज बन गए जिनसे हजारों हज़ार लोग जुड़ गए। नेताओं से लेकर व्यापारी, कलाकार से लेकर खिलाड़ी, छात्र, गृहिणी, बुजुर्ग, जवान, ऐसा कोई वर्ग नहीं बचा था जहां से यह आवाज़ न आ रही हो। ऐसे में यह केंद्र सरकार के प्रमुख दल, कॉंग्रेस की कूटनीति ही कही जाएगी कि उसने राज्यसभा नामांकन के द्वारा इस मांग को दबाने का काम किया। सचिन को भारतरत्न न देने से लोगों में सरकार के प्रति जो रोष व्याप्त था वह गायब हो गया। वह रोष न केवल गायब हुआ बल्कि सचिन के प्रति शंका में बदल गया। जिस सचिन को भारत रत्न के रूप में देखने को हर देशवासी लालायित था, उसी सचिन पर आज शब्द बाण चल रहे हैं। आज अपने साथियों तक की दृष्टि में सचिन संदिग्ध हो गए हैं। काँग्रेस केवल सचिन को भारतरत्न की मांग को दबाना चाहती थी, पर विरोधियों ने अपनी नासमझी से उसे अतिरिक्त लाभ दे दिया। आज सचिन की चहुंओर आलोचना हो रही है। काँग्रेस विरोधियों ने काँग्रेस पर हमला करते हुए असल में सचिन को निशाने पर ला दिया है। सचिन ने कुछ हासिल नहीं किया, बल्कि वह काँग्रेस की इस शातिर गुगली पर‘क्लीनबोल्ड’होकर ही राज्यसभा पहुंचे हैं। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम से काँग्रेस अपनी सफलता पर प्रसन्न होगी और सचिन निश्चित रूप से भारी दबाव में होंगे। इसका असर उनके खेल पर भी पड़ सकता है। धीर-गंभीर सचिन अपने स्वभाव के अनुसार आज भी चुप हैं, पर मेरा विश्वास है कि वे हमेशा की तरह एक बार फिर अपने काम से जवाब देंगे और जल्दी ही उस सम्मान को भी हासिल करेंगे जिसके वे पात्र हैं।
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