Friday, October 1, 2010

महात्मा

कालेज में दाखिले के लिए एक लड़का लाइन में खड़ा था. जब उसका नम्बर आया तो उसने अपना फॉर्म बाबू को दिया. बाबू ने कहा इसमें पिता का व्यवसाय का कॉलम खाली है, इसे भरो. लड़के ने भर कर बाबू को वापस दिया. हाथ में लेते ही वो कुर्सी से उछल कर खड़ा हो गया. लड़के ने लिखा था प्रधानमंत्री, भारत सरकार. वो थे तत्काली प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के सुपुत्र श्री सुनील शास्त्री. मैंने बचपन में यह प्रसंग पढ़ा था. कुछ साल पहले उनसे भेंट हुई तो मैंने पूछा क्या सच में ऐसा हुआ था? उन्होंने हंस कर कहा कि हाँ ये सच है. बाबूजी को कभी पसंद नहीं था कि हम वी आई पी कि तरह रहें. सादगी की उस मूरत को नमन. आज का दिन पावन है जिस दिन एक नहीं देश में दो-दो महापुरुषों का अवतरण हुआ.

4 comments:

  1. satyam mandowaraOctober 02, 2010 2:29 AM

    shashtri ji ki wo ghatna jo hamne apne bachpan me padi thi me ajj tak nahi bhul paya ki kese unke pas nav me bethne ke pese nahi the to ganga nadi ko teir kar hi paar kar li....kitna bada atmasamman evam swabhimaan tha ..unko us nav wale ka udhar karna bhi pasand nahi aya aur na wo kisi ki meharbani apne uper chahte the....shat shat naman us sachhe raajneta ko

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  2. SHASTRI JI SADGI KE PRATIK THE ...AB SARKARO KE PAAS UNKO YAAD KARNE KA SAMAY KHA HE

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  3. वास्‍तव में सादगी की प्रतिमूर्ति थे शास्‍त्री जी...यह सामग्री हमने भी पढ़ी है। जय हो।

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  4. इससे अच्छा सादगी का उद्धरण क्या हो सकता है आज ऐसे उधार्नो की जरूरत है

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