Thursday, March 15, 2012

फिर वही चवन्नी लाया हूँ

हे वित्तमंत्री,
गैस पर इतनी भी सब्सिडी मत देना कि चूल्हा ही रह जाये और उस पर चढ़ाने को दाल न मिले। हम जानते हैं कि आपके पास सीमित धन है क्योंकि आप एक ईमानदार देश के नेता हैं। हम यह समझते हैं कि आप एक जगह से निकाल कर ही दूसरी जगह पैसा डाल पाते हैं। आप इधर का माल उधर करते हैं तभी सब सुचारू रूप से चल पाता है स्वामी। इसीलिये आपसे हाथ जोड़ विनती करते हैं कि गैस, तेल, उद्योगादि की सब्सिडी थोड़ी कम करके बेचारे किसानों को दे दें क्योंकि हम मोबाइल, कार नहीं खाते। हम तो वही खाते हैं, जो वह उगाता है। हे वित्तमंत्री, किसानों के घर जाते ही लगता है मानो बिना विज़ा के हम सोमालिया आ गये हैं। हम भारत में ही रहना चाहते हैं प्रभो, अत: आपसे विनम्र निवेदन है कि यह सुविधा तुरन्त समाप्त कर दें।
देव, चीन आँखें लाल-लाल करके लगातार घूरता रहता है, आप उसका भी कुछ करें। इसके लिये आप रक्षा देव की तपस्या करने को मत कहियेगा। आप देवों के देव हैं। सब आपसे ही संचालित हैं। आपके बिना यहाँ क्या हो सकता है भगवन? हम अल्पबुद्धि प्राणी आपकी स्तुति किन शब्दों में करें, यह समझ नहीं पाते हैं। स्वामी, देवाधिदेव प्रधानमंत्री जी अपने गण विदेश मंत्री जी के सहयोग से जाने किस-किस लोक से, कितने ही प्रयत्नों से धन मांगकर लाते हैं। उस समय उनकी स्थिति किसी भिक्षु की सी हो जाती है। हमारे पूज्यों की ऐसी हालत देख मेरा मन द्रवित हो उठता है प्रभु। पर आप उस धन को र्निलिप्त भाव से हम अंकिचनों में बाँट देते हैं। आप दयासिंधु हैं देव।
आपसे कुछ नहीं छिपा है प्रभु। आप सब जानते हैं, पर मन नहीं मानता आपसे कहे बिना। आप दाता हैं, अपना दु:खड़ा आपसे न कहें तो किससे कहें? आप जब ऊपर से हज़ारों करोड़ रूपये बरसाते हैं तो आँखों में चमक आ जाती है। पर नीचे धरती पर हर बार चवन्नी ही हाथ आती है प्रभो। बीच में उडक़र सब इधर-उधर गिर जाता है। बालक की धृष्टता को क्षमा करना स्वामी, पर इस बार निशाना कुछ ठीक कर लेना।
आपको बारम्बार प्रणाम।

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