बचपन से ही ईश्वर में अटूट आस्था थी...माँ के साथ लगभग रोज़ शाम को मंदिर जाती थी...बाद में अकेले भी जाना शुरू कर दिया...जल का लोटा लेकर सुबह स्कूल जाने के पहले मेरा मंदिर जाना आज भी कुछ को याद है...दक्षिणी दिल्ली के कुछ-कुछ अमेरिका जैसे माहौल में भी सोमवार के व्रत रखती...इसी बीच माँ की सहेली ने हरिद्वार में भागवत कथा का आयोजन किया और मुझे माँ के साथ जाने का अवसर मिला...उसी समय स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती जी से परिचय हुआ...वे उस समय जौनपुर से सांसद थे...मेरी उम्र लगभग बीस वर्ष थी...घर में सबसे छोटी और लाडली होने के कारण कुछ ज्यादा ही बचपना था...फिर भी ज्ञान को परखने लायक समझ दी थी ईश्वर ने...स्वामी जी की सामाजिक और आध्यात्मिक सूझ ने मुझे प्रभावित किया...मेरे पितृ विहीन जीवन में उनका स्नेह भी महत्वपूर्ण कारण रहा जिसने मुझे उनसे जोड़ा...उन्हें भी मुझमें अपार संभावनाएं दिखाई दीं...उन्होंने कहा कि तुम वो बीज हो जो विशाल वटवृक्ष बन सकता है...वे मुझे सन्यास के लिये मानसिक रूप से तैयार करने लगे...कहा कि ईश्वर को पाने का सबसे उचित मार्ग यही है कि तुम सन्यास ले लो...लड़की होकर किसी और नाते से तुम इस जीवन में रह भी नहीं पाओगी...यह सब बातें मन पर प्रभाव छोड़तीं रहीं...मेरी ईश्वर में प्रगाढ़ आस्था देखकर वे आश्रम में आयोजित होने वाले अधिकांश अनुष्ठानों में मुझे बैठाते...धीरे-धीरे आध्यात्मिक रूचि बढ़ती गयी और एक समय आया जब लगा कि यही मेरा जीवन है...मैं इसके सिवा कुछ और कर ही नहीं सकती...स्वामी जी से मैंने कहा कि अब मैं सन्यास के लिये मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार हूँ...आप मुझे दीक्षा दे दीजिये...उन्होंने कहा पहले सन्यास पूर्व दीक्षा होगी, उसके कुछ समय बाद संन्यास होगा....२००२ में मेरी सन्यास पूर्व दीक्षा हुई और मुझे नाम दिया गया – साध्वी चिदर्पिता...अब पूजा-पाठ, जप-तप कुछ अधिक बढ़ गया...नित्य गंगा स्नान और फिर कोई न कोई अनुष्ठान...स्वाध्याय और आश्रम में चलने वाले कथा-प्रवचन....इसी बीच स्वामी जी ने आदेश दिया कि तुम शाहजहांपुर स्थित मुमुक्षु आश्रम में रहो.... तुम आगे की पढ़ाई करने के साथ ही वहाँ मेरी आँख बनकर रहना...कुछ समय वहाँ बिताने के बाद मैं उनकी आँख ही नहीं हाथ भी बन गयी...मुमुक्षु आश्रम का इतना अभिन्न भाग बन गयी कि लोग आश्रम को मुझसे और मुझे आश्रम से जानने लगे....इस बीच वहाँ महती विकास कार्य हुए जिनका श्रेय मेरे कुछ खास किये बिना ही मुझे दे दिया जाता...अब स्वामी शुकदेवानंद पी जी कॉलेज और उसके साथ के अन्य शिक्षण संस्थानों का बरेली मंडल में नाम था...आश्रम की व्यवस्था और रमणीयता की प्रशंसा सुनने की मानो आदत सी हो गयी थी..दूसरे लोगों के साथ स्वामीजी को भी लगने लगा कि इस सब में मेरा ही सहयोग है...अब उनके लिये मुझे आश्रम से अलग करके देखना असंभव सा हो गया...इतना असंभव कि प्रमुख स्नान पर्वों पर भी मेरा शाहजहाँपुर छोड़कर हरिद्वार जाना बंद कर दिया गया...गंगा की बेटी के लिये यह कम दुखदायी नहीं था पर कर्तव्य ने मुझे संबल दिया....इन वर्षों में जाने कितनी बार मैंने अपने संन्यास की चर्चा की...उन्होंने हर बार उसे अगले साल पर टाल दिया...आखिर में उन्होंने संन्यास दीक्षा को हरिद्वार के कुम्भ तक टाल कर कुछ लंबी राहत ली...मैंने धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की....कुम्भ भी बीत गया...मेरी बेचैनी बढ़ने लगी...बेचैनी का कारण मेरा बढ़ा हुआ अनुभव भी था...इस जीवन को पास से देखने और ज्ञानियों के संपर्क में रहने के कारण मैं जान गयी थी कि स्वामीजी सरस्वती संप्रदाय से हैं और शंकराचार्य परंपरा में महिलाओं का संन्यास वर्जित है...जो वर्जित है वो कैसे होगा और वर्जित को करना किस प्रकार श्रेयस्कर होगा मैं समझ नहीं पा रही थी...मैंने सदा से ही शास्त्रों, परम्पराओं और संस्कृति का आदर किया था....इस सबको भूलकर, गुरु आदेश पर किसी प्रकार से संन्यास ले भी लेती तो भी शास्त्रोक्त न होने के कारण स्वयं की ही उसमें सम्पूर्ण आस्था नहीं बन पाती...साथ ही देश के पूज्य सन्यासी चाहकर भी मुझे कभी मान्यता नहीं दे पाते....और फिर उस मान्यता को मैं माँगती भी किस अधिकार से?...खुद शास्त्र विमुख होकर उनसे कहती कि आप भी वही कीजिये? इन्ही सब बातों पर गहन विचार कर मैंने साहसपूर्वक स्वामी जी से कहा कि आप शायद मुझे कभी संन्यास नहीं दे पायेंगे....अपने मन में चल रहे मंथन को भी आधार सहित बताया, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि परम्पराएँ और वर्जनाएं कभी तो तोड़ी ही जाती हैं...हो सकता है यह तुमसे ही शुरू हो...संन्यास देना मेरा काम है....इसके लिये जिसे जो समझाना होगा वह मैं समझाऊंगा...तुम परेशान मत हो...यह कह कर उन्होंने अगली तिथि इलाहबाद कुम्भ की दी...यह बात होने के बाद हरिद्वार में रूद्र यज्ञ का आयोजन हुआ...स्वामीजी ने मुझे तैयार होकर यज्ञ में जाने को कहा...मैं गयी...शास्त्रीय परम्परा को निष्ठा से निभाने वाले आचार्य ने मुझे यज्ञ में बैठने की अनुमति नहीं दी, जबकि वे मेरा बहुत सम्मान करते थे..स्वामीजी को पता चला तो उन्होंने आचार्य से कहा कि वो तो शुरु से सारे ही अनुष्ठान करती रही है...पर वे न माने और स्वामीजी चुप हो गये...उनकी उस चुप्पी पर मैं स्तब्ध थी...सन्यासी आचार्य से अधिक ज्ञानी होता है...मैंने अपेक्षा की थी कि स्वामीजी अपने ज्ञान से तर्क देकर उन्हें अपनी बात मनवाएंगे....पर ऐसा नहीं हुआ...अब मेरा विश्वास डिग गया और लगा कि आचार्य को न समझा पाने वाले अखाड़ों के समूह को क्या समझा पायेंगे....यज्ञशाला से लौटकर स्वामीजी ने मेरी व्यथा दूर करने को सांत्वना देते हुए कहा कि दोबारा इन्हें फिर कभी नहीं बुलाएँगे....पर इससे क्या होता...आचार्य ने तो शास्त्रोक्त बात ही की थी...उन्होंने जो पढ़ा, वही कह दिया...अब मैं सच में दुखी थी...मुझे समझ में आ गया था कि इलाहबाद कुम्भ भी यूँ ही बीत जायेगा...मेरे संन्यास के निर्णय पर माँ के आँसू, भाई-भाभी के स्तब्ध चेहरे आँखों के आगे घूम गये...लगा, मानो यह धोखा मेरे साथ नहीं, मेरे परिवार के साथ हुआ...ग्यारह साल का जीवन आज शून्य हो गया था...उसी दौरान मैं गौतम जी के संपर्क में आयी...उस समय उन्होंने प्रकट नहीं किया पर उनके ह्रदय में मेरे प्रति प्रेम था...बिना बताये ही मानो वे मेरे जीवन की एक-एक घटना जानते थे...उन्होंने बिना किसी संकोच के कहा - आप चुनाव लड़िए....मेरा सवाल था कि चुनाव और संन्यास का क्या सम्बन्ध...तब उन्होंने समझाया कि आपकी सोच आध्यात्मिक है...आप जहाँ भी रहेंगी यह बनी रहेगी और यह आपके हर काम में दिखेगी...मेरा विश्वास है कि आपके जैसे लोग राजनीति में आयें तो भारत का उद्धार हो जायेगा...सन्यास नहीं दे सकते तो कोई बात नहीं, आप स्वामीजी से अपनी चुनाव लड़ने की इच्छा प्रकट कीजिये...क्षेत्र वगरैह भी उन्होंने ही चुना...पर, यह इतना आसान नहीं था...अभी जिंदगी के बहुत से रंग देखने बाकी थे.... मेरे मुँह से यह इच्छा सुनते ही बाबा (स्वामीजी) बजाय मेरा उत्साह बढ़ाने के फट पड़े...उनके उस रूप को देख कर मैं स्तब्ध थी...उस समय हमारी जो बात हुई उसका निचोड़ यह निकला कि उन्होंने कभी मेरे लिये कुछ सोचा ही नहीं... उनकी यही अपेक्षा थी कि मैं गृहिणी न होकर भी गृहिणी की ही तरह आश्रम की देखभाल करूँ....आगंतुकों के भोजन-पानी की व्यवस्था करूँ और उनकी सेवा करूँ....आश्रम में या शहर में मेरी जो भी जगह थी, ख्याति थी वो ईश्वर की कृपा ही थी...ईश्वरीय लौ को छिपाना उनके लिये संभव नहीं हो पाया था....इस लिहाज़ से जो हो रहा था वही उनके लिये बहुत से अधिक था... तिस पर चुनाव लड़ने की इच्छा ने उन्हें परेशान कर दिया...उन्होंने मना किया, मैं नहीं मानी...उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारी टिकट के लिये किसी से नहीं कहूँगा...पैसे से कोई मदद नहीं करूँगा, तुम्हारी किसी सभा में नहीं जाऊंगा, यहाँ तक कि मेरी गाड़ी से तुम कहीं नहीं जाओगी....जहाँ जाना को बस से जाना...मैंने कहा ठीक है...इस पर वे और परेशान हो गये और उन्होंने अपना निर्णय दिया कि यदि तुम्हें चुनाव लड़ना है तो दोपहर तक आश्रम छोड़ दो....मैंने उनकी बात मानी...मेरा आश्रम छोड़कर जाना वहाँ के लिये बड़ी घटना थी...दोपहर तक शहर के संभ्रांत लोगों का वहाँ जुटना शुरू हो गया...स्वामीजी के सामने ही वे कह रहे थे कि यदि आज आश्रम जाना जाता है तो आपकी वजह से, आपके जाने के बाद यह वापस फिर उसी स्थिति में पहुँच जायेगा...आप मत जाइये....स्वामीजी ने जाने को कहा है तो क्या, आपने आश्रम को बहुत दिया है, इस आश्रम पर जितना अधिकार स्वामीजी का है उतना ही आपका भी है....और भी न जाने क्या-क्या...स्वामीजी यह सब सुनकर सिर झुकाए बैठे थे...मुँह पर कही इन बातों का खंडन करना भी तो उनकी गरिमा के अनुरूप नहीं था...मेरे स्वाभिमान ने इनमें से किसी बात का असर मुझ पर नहीं होने दिया और मैं आश्रम छोड़कर आ गयी....शून्य से जीवन शुरू करना था पर कोई चिंता नहीं थी...एक मजबूत कंधा मेरे साथ था...श्राद्ध पक्ष खत्म होने तक मैं गौतम जी के परिवार के साथ रही जहाँ मुझे भरपूर स्नेह मिला...नवरात्र शुरू होते ही हमने विवाह कर लिया...
विवाह के बाद हज़ारों बधाइयाँ हमारा विश्वास बढ़ा रहीं थीं कि हमने सही कदम उठाया...विरोध का कहीं दूर तक कोई स्वर नहीं...शत्रु-मित्र सब एक स्वर से इस निर्णय की प्रशंसा कर रहे थे...केवल कुछ लोगों ने दबी ज़बान से कहा कि विवाह कर लिया तो साध्वी क्यों..? साध्वी क्यों नहीं...रामकृष्ण परमहंस विवाहित थे, उन्होंने न सिर्फ अपना जीवन ईश्वर निष्ठा में बिताया बल्कि नरेंद्र को संन्यास दीक्षा भी दी...ऐसे न जाने कितने और उदाहरण हैं जिनका उल्लेख इस आलेख को लंबा करके मूल विषय से भटका देगा....इसके अलावा केवल शंकराचार्य परंपरा में अविवाहित रहने का नियम है...और उसमें महिलाओं की दीक्षा वर्जित है...तो मुझ पर तो अविवाहित रहने की बंदिश कभी भी नहीं थी...सन्यासी का स्त्रैण शब्द साध्वी नहीं है...यह साधु का स्त्रैण शब्द है....वह व्यक्ति जो स्वयं को साधता है साधु है, साध्वी है...यदि साध्वी होने का अर्थ ब्रह्मचर्य है तो बहुत कम लोग होंगे जो इस नियम का पालन कर रहे हैं...इस प्रकार के अघोषित सम्बन्ध को जीने वाले और वैदिक रीति से विवाहित होते हुए सम्बन्ध में जीने वालों में से कौन श्रेष्ठ है और कौन अधिक साधु है इसका निर्णय कोई मुश्किल काम नहीं...इसके अलावा धर्म, आस्था या आध्यात्म को जीने के लिये विवाहित या अविवाहित रहने जैसी कोई शर्त नहीं है...जिसे जो राह ठीक लगती है वह उसी पर चलकर ईश्वर को पा लेता है यदि विश्वास दृढ़ हो तो...बस अन्तःकरण पवित्र होना चाहिये...
ऊपर लिखे घटनाक्रम को यदि देखें तो यह विवाह मज़बूरी लगेगा पर ईश्वर साक्षी है कि ऐसा बिलकुल नहीं था...दोनों के ही ह्रदय में प्रेम की गंगा बह रही थी पर दोनों ही मर्यादा को निष्ठा से निभाने वाले थे...सारा जीवन उस प्रेम को ह्रदय में रखकर काट देते परन्तु मर्यादा भंग न करते....मैंने पूरा जीवन ‘इस पार या उस पार‘ को मानते हुए बिताया...बीच की स्थिति कभी समझ ही नहीं आयी....जब तक संन्यास की उम्मीद थी तब तक विवाह मन में नहीं आया...दिल्ली का जीवन जीने के बाद मैं शाहजहांपुर जैसे शहर में और वो भी ५३ एकड में फैले आश्रम में नितांत अकेले कैसे रह लेती हूँ यह लोगों के लिये आश्चर्य का विषय था...पर मेरी निष्ठा ने मुझे कभी इस ओर सोचने का अवसर नहीं दिया....जब संन्यास की उम्मीद समाप्त हो गयी तो त्रिशंकु का जीवन जीने का मेरी जैसी लड़की के लिये कोई औचित्य नहीं बचा था...साहस था और परम्परा में विश्वास था, उसी कारण वैदिक रीति से विवाह किया और ईमानदारी से उसकी सार्वजनिक घोषणा की...मैंने इस विवाह को ईश्वरीय आदेश माना है...मुझे गर्व है कि मुझे ऐसे पति मिले जो बहुत से सन्यासियों से बढ़ कर आध्यात्मिक हैं, सात्विक हैं, और सच्चे हैं...मांस-मदिरा से दूर रहते हैं....उदारमना होते हुए भी मेरे मान के लिये सारी उदारता का त्याग करने को तत्पर रहने वाले वे भारतीयता के आदर्श हैं....ये उन्हीं के बस का था जो मुझे उस जीवन से निकाल ले आये वरना इतना साहस शायद मैं कभी न कर पाती और यह संभावनाओं का बीज वहीँ सड जाता...हरिः ओम्!
jai ho...rohit from shahjahanpur
ReplyDeletedekhiye main aapke viraat vyaktitva ke aage bahut chhota hu pichle kuch conversation main badtamizi bhari baatein bhi mere dwara kahi gayee pehle to main uske liye aapse kshama prarthi hu .chidarpita ji jaisa ki aapne apne udbodhan main likha hai us hisaab se aapka istemaal hua lagta hai aap itne samay un logo ke bich rahi aur aaapko yeh ehsaas bhi hua ki jo ho raha woh galat disha main jaa raha hai aapko andhere main rakh kar swami ji dwara jo paap kiya gaya hai woh akshamya hai swami ji ka yeh kritya maafi ke kaabil nahi hai kyuki sant ka kaarya sahi marg dikhana hai naa ki confuse karna.aapne 10000000% sahi kaam kiya hai aur un swami ji ka sarvajanik samman hona chahiye jo ki apradhiyo ka kiya jaata hai.kintu aapka badappan apki khamoshi hai.
ReplyDeletepunah kshama kare
mitesh soni
devi..padhaa , janaa,par abhi samjha nahi ...
ReplyDeleteBas aashirwaad ye hai ...ki mangal ho ..aur haan ek baat kachot gayi ..kshatriyon ka dharm maans aur madira nahi hai ..maryada purushottam Ram kshatriya dharm ke janak hain ..
punah shubhkaamnaaein
Mangal ho
yah ishwar ka aadesh tha...shayad ..ishwar ne aapko jeewan ka har sukh diya... adyatmik ke saath ab paariwarik sukh bhi diya hai..jo bhi logo ka aapke jeewan me samandha rha hoga wo sab ishwar ke dwara hi likha gya hoga..
ReplyDeletesachin tripathi
TCS Bangalore
जीवन...!!
ReplyDeleteप्रेम
ReplyDeleteबहुत विस्तार ने आपने अब तक का आपका जीवन इस लेख मे दिखाया है.. और मैने भी पूरी तन्यमता से पढा भी, और अन्ततः आपका निर्णय सही साबित हुआ, आपका धेर्य भी तारीफ के काबिल है जो आपने इतने बरस सन्यास दीक्षा की प्रतीक्षा मे गुजार दिये, वैसे आप किसी और परम्परा में भी सन्यास ले सकतीं थी. ( मै जिस परम्परा से हूँ उसमे इस प्रकार का कोई बंधन नहीं है)
ReplyDeleteलेकिन मै आपके इस निर्णय का स्वागत करता हूँ,और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आप अध्यात्म की उस उंचाई को छूयें जहां तक पहुँच पाने का स्वप्न देखना भी तथाकथित सन्यासियों द्वारा संभव न हो.. हरि ओम तत्सत...
स्वार्थ आदमी को कितना गिरा देता है आपको देख कर पता चलता है स्वार्थ के लिए पहले परिवार माँ का घर छोड़ा फिर गुरु का घर अब पता नहीं आप ही जाने
ReplyDeleteKehte hai Ishwar ki iksha ke bina patta bhee nahee hilta aapka lekh pada aur aapka nirnay accha laga. Sadhvi Chidarpita ji grahstha jeewan mein rehkar bhee ishwar ke prapti kee ja sakti hai afterall ishwar ne hee grahstha jeewan ke shuruwat kee hai. Iske aage mein kuch nahee keh sakti abhi to aap se bahut gyan prapt karna hai. Mujhe aisa lagta hai aapke saath rehkar mein iswar se jude rehti hoon. Yehi kamna karte hue ke aapka vivahit jeewan mangalmai ho aur apko apna marg prapt karne ke liye Ishwar ke kripa hamesha prapt ho... Hari Om
ReplyDeleteHardik shubhkanaae....!
ReplyDeleteSadhu ya sadhvi yadi grihasth ho to isse uttam baat kuchh ho hi nahi sakti... Kyoki agar sadhu grihasth hai to kisi naari ke prati uske andar galat bhawnae kadaapi nahi aaengi.... Or yadi koi sadhvi grihasth hai to usko koi galat najarie se nahi dekh sakta...!kyoki wo ek grihasth hai...!
Shashtron me bhi Grihasth jeevan sabse uttam mana gaya hai...!
Parantu 1 baat se main apko avagat karana chahta hu...ki jo bhi "sadhvi" shabd se waakif kuchh murkh hai... Wo yahi samjhte hai ki 'sadhvi' matlab bina shadi shuda... Main swayn puchhta hu ki vaivahik hone ke baad kya sadhuta mar jati hai... Nahi aisa nahi... Un murkho se ye dunia bhari padi hai...! Aap un murkho ko samjhaate samajhaate thak jaengi.... 1 hi upay hai....'sadhvi' hone ka tyag na kare... Balki 'Sadhvi' shabd ka tyag kar de...! Isase or bhi 'sadhvi matao' ko raahat milegi...! Warna aap ke kaaran log un sadhvi matao se tark vitark karenge...!
Example:
www.facebook.com/shashiprabhaji
सुनील चौहान....आज आप अपनी परीक्षा में सफल हुए...एक आश्रित को ऐसे ही बात करनी चाहिये..मुझे दीदी कहकर पैर छूने वाला यदि आज इस भाषा में बात कर रहा है तो वो उन रोटियों का ही क़र्ज़ उतार रहा है जो उसे कृपा के रूप में मिल रही हैं, अपनी मेहनत से नहीं...मैं आपको समझ सकती हूँ....
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ReplyDeleteसुनील चोहान जी मे आपको और चिदार्पिता जी को भी व्यक्तिगत रूप से नहीं जनता लेकिन आपकी बातो को सुनकर मेरे मन में कुछ विचार आ रहे हँ सो उन्हें व्यक्त कर रहा हु आपकी ये बात सही हँ
ReplyDeleteजब तक चिदार्पिता जी चिन्मयानन्द जी के अनुकूल व्यबहार कर रही थी तब तक तो सब ठीक था लेकिन जैसे ही उन्होंने अपने मन की कोई बात करनी चाहि त्यों ही स्वामी जी फट पड़े....
वाह वाह...
एक बीस वर्ष की लड़की का कैसे इतने सालो तक मानसिक रूप से शोषण किया , में तो हेरान हु की कोई संत कहलाने वाला आदमी ऐसा कैसे कर सकता हँ ?
चिदार्पिता जी ने स्वामी जी की बातो में आकर घ आर छोड़ा, लेकिन स्वामी जी ने क्या किया ??
भगवान् के नाम पर , सन्यासी बनाने के नाम पर घर छुड्वाया और स्क्कूल की व्यवस्था की देख रेख करवा रहे हँ?? क्या हँ ये सब ?
सालो तक झूठ बोलते रहे की संन्यास दिलवाऊंगा, दिलवाऊंगा ..... क्यों??
खुद सांसद हँ लेकिन अपने अधीन किसी को विधायक भी बनते नहीं देख सकते...
और मैंने तो ये भी सुना हँ की वे तो भारत के गृह राज्य मंत्री भी रहे हँ... उस दोरान धर्म और गंगा के लिए क्या किया था ??
साध्वी जी , ये शादी के बाद की दूसरी अच्छी खबर हँ जो आपने सुनाई हँ, की आपने स्वामी जी का साथ छोड़ दिया
ReplyDeleteमेरे लिए आपसे जुडी ये दूसरी खबर ज्यादा अच्छी हँ
मुझे आपके लिए ख़ुशी भी हँ और दुःख भी
ख़ुशी इस बात की अंततः आपने गलत संग को छोड़ा और दुःख इस बात का की आपने अपना इतने कीमती वर्ष यूँ ही व्यर्थ गँवा दिए
इतने सालो में तो अगर कोई योग्य गुरु होता तो जैसा आपकी श्रद्धा थी , तो आप तो दस बार भगवत प्राप्ति करती....
लेकिन क्या हुआ ? इतनी जबरदस्त श्रद्धा , सब बेकार गयी और आप वही पहुच गयी जहा आप पहले थी
लेकिन आप तो उससे भी पीछे चली गयी..इस दौरान आपने जो स्वामी जी के सिद्धांतो के अधीन रहकर जो ज्ञान प्राप्त किया हँ उससे आपको कुछ नहीं मिलेगा बल्कि उससे तो आपको मिथ्या अभिमान रुपी महान दोष और प्राप्त हुआ हँ ( की मुझे कुछ पता हँ अध्यात्म के बारे में, आप भले ही इस बात को ना माने लेकिन ये किसी न अंश में आपके अंदर होगा जरुर )
navjeevan kee dheron badhai chidarpita ji. dheron shubh kamnayen.
ReplyDeleteसाध्वीजी,
ReplyDeleteबहुत मानसिक परेशानी सही आपने। लेकिन अब बुरे दिन बीत चुके। मैं ज्ञानी नहीं लेकिन इतना कह सकता हूँ कि आपके सामने एक सुंदर भविष्य और आपका सुंदर परिवार है। बस पुरानी बातों को भूलिए। हो सकता है कि चुनाव लड़ना अब आपके लिए इतना आसान नहीं रहा हो लेकिन समाज सेवा तो आप बिना चुनाव लड़े भी कर सकती हैं/ कर रहीं थीं।
hello sadhvee madam
ReplyDeleteman ki chanchalta mar la bus ho ghaya bhajan.now where is your husband. you are going to fight election from which party.if you want full succes thencall her husband for living with you as a sant.there are somany example in india.who are sant ,politician and also gharsti.and also sending to school thir children. do not worry carry on public will stand with you.you have so many quality .all good wishes with you .ok good wishes also for happy marriage life.
ये अच्छा हुआ की आपने संन्यास नहीं लिया , क्योकि वो एक सही कदम नहीं होता
ReplyDeleteविवाह करने का आपका निर्णय और स्वामी जी को छोड़ने का आपका निर्णय दोनों ही बहुत सही हँ और में आपको इन दोनों साहसिक फ़सलो के लिए आपको बधाई देता हु
साध्वी जी , में चाहूँगा की आप इस बार किसी छलावे में ना आये और किसी क्षोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ गुरु के अधीन रहकर अपने साधना पथ में आगे बढे
में आप दोनों के सुखद और मंगलमय वैवाहिक जीवन की कामना करता हु
लकी जी, धन्यवाद...आपका कहना सही हो सकता है...पर एक बार विश्वास करके जीवन के कीमती वर्ष खोये, दोबारा ऐसा कुछ सोचने का मन ही नहीं हुआ..गुरु के प्रति निष्ठा न हो, समर्पण न हो तो सन्यास का औचित्य नहीं और मैं मानसिक रूप से किसी के प्रति समर्पण को अपने को फिर से तैयार नहीं कर पायी...इसके अलावा स्त्री का सन्यास शास्त्रीय नहीं है यह भी जान लिया था...
ReplyDeleteयह सब प्रारब्ध है, ईश्वर ने जिसके प्रारब्ध में जो कुछ निर्धारित किया है वह अटल है, आपके जीवन के अति महत्वपूर्ण पृष्ठ को पढ़ कर इतना ही कहा सकता है कि ईश्वर ने किसी पीड़ा दायी अनहोनी से आपको बचा लिया है और सही समय पर सही दिशा में आपका मार्ग प्रशस्त किया है, तथाकथित स्वामी जी द्वारा अपने स्वार्थ की पूर्ती में किया गया आपका उपयोग उनके राजनीतिक चरित्र की विशेषता ही कही जा सकती है जिसका आंकलन करने में आपने भूल की है क्यों कि आप को उनके द्वारा दिए गए स्वार्थ निहित सहारे में अपनी उन्नति का मिथ्या भ्रम हो चला था I अपने भविष्य के प्रति अब जो भी निर्णय लें पूरे परिवार के साथ सोच समझ कर लें I राजनीति के कीचड भरे दल दल में यदि स्वयं को कमल की भांति सुरक्षित रखने का साहस हो तो ही प्रवेश करें क्योंकि आपके मार्ग में खतरों की संभावना अब और प्रबल हो सकती है, आप के पूर्व सहयोगी - शुभ चिन्तक अथवा प्रशंसकों की भूमिका का परिवर्तित परिस्थितियों में सही मूल्यांकन करें I सुखद दाम्पत्य एवं गृहस्थ जीवन सहित आध्यात्मिक जीवन के लिए मंगल कामना , शुभम भवतु I
ReplyDeleteChidarpita, wish you a happy married life full of bliss and purpose and fulfillment. THE FIRST CONDITION OF ANY MEANINGFUL LIFE IS TO LIVE ON A PLANE THAT IS OF AN AWAKENED HUMAN BEING. IF THAT CONDITION IS MET AND YOU TRULY AND HONESTLY BELIEVE IT CORRECT, THEN WHAT YOU HAVE DONE IS ABSOLUTELY FINE. CARE NOT WHAT THE WORLD SAYS IN REACTION TO IT. BE IT A COMMON PERSON LIKE ME OR I WOULD GO EVEN TO THE EXTENT SAYING BE IT EVEN SWAMI CHINMAYANAND.WITH DUE RESPECT TO THE GREAT SWAMI, I WOULD SAY EVERY HUMAN SOUL IS SPECIAL AND NEAR TO HIGHER IDEALS IF IT IS TRUE TO ITSELF. REST ALL IS LET GONE BE BYGONE. AGAIN WISH YOU A VERY HAPPY MARRIED LIFE. BLESSINGS OF A FATHERLY PERSON.
ReplyDeleteचिदर्पिताजी,
ReplyDeleteसाहसिक फ़ैसलो के लिए सलाम
और ये सब हिम्मत से लिखा इसके
लिए हार्दिक बधाई.. शुभकामना
.. अप्प दीपो भव..
सब उपर वाले के बनाये नियम पर चलते है चाहे आप हो या मै...प्यार भगवान से करे या मनुष्य से प्यार तो प्यार है जहा राजनीती की बात है इस फैसले से मै सहमत नहीं हू क्यों की आज कल की राजनीती बहुत ही गन्दी हो चुकी है सुखद दाम्पत्य जीवन की शुभ कामना के साथ.....
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ReplyDeleteसाध्वी जी ...इस अबोध बालक के विचारों का उत्तर देकर ज्ञान का बोध कराए
ReplyDeleteMan na Rangaye Rangaye Jogi Kapada, Ek padhi likhi ladaki agar aise dhongi Baba ke jaal me fansi rahe jo ki khud Sansad aur Minister ho aur doosaro ko sanyaas ki shiksha de to mujhe dayaa aati hain aise bholepan par jo Babao ka Bharosha karate hain. Agar koi Sachcha sant hi rahega to Itni badi sampatti kyon rakhega. Ye Insani fitrat hain Bina Bhains pale doodh peene ka.......Wish you very happy life..
ReplyDeleteSadhvi Ji Pranam,
ReplyDeleteKya diksha lene se koi sanyasi ho jata hai ya Bhagwat prapti mein kutch suvidha hoti hai. Insaan mann aur karm se SADHU ya SANYASI hota hai. Aap ka kadam ek sahi samay par uthaya gaya ek sahi kadam hai jiske liye aap badhai ki paatra hai. Koi bhi soch samajh ke gambhirta poovak uthaye gai kisi kadam ki kisi se approval ki jarurat nahi hoti.
Ram Krishna Paramhans, Lahiri Mahashay, Pt. Gopi Nath Kaviraj ji, Hanu Prasad Poddar ji aadi aneko mahapurush hue hai jo vivahit sant the aur Bhagat prapt the.
Aap ki jaati to main nahi jaanta prantu ek Kshtriye se vivah kar aap bhi ek kshtrani ho gayi hai. Aap ke sandesh mein ek pankti se galat sandesh jata hai aur aisa prateet hota hai ki jaise kshtrio ki pehchan keval Maans aur Madira hi hai aur vo isi se jaane aur pehchane jate hai.
ReplyDeleteAapko aur Gautam ji ko pun ek baar badhai ek sunhare bhavisya ke liye.
आप सभी की शुभकामनाओं और स्नेह के लिये अनंत आभार...हमीर पाल जी, आपकी बात से सहमत होते हुए मैंने गलती सुधार दी है..मैं क्षत्राणी न भी होती तो क्षत्रियों के प्रति मेरे मन में सम्मान कम नहीं होता...
ReplyDelete:) :) :) :) Jay Ho
ReplyDeleteYou have done really a appreciable work. Many many heartiest congratulation to you, your husband & both family. Once again best wishes.
ReplyDeleteसन्यासी का स्त्रैण शब्द साध्वी नहीं है...यह साधु का स्त्रैण शब्द है....वह व्यक्ति जो स्वयं को साधता है साधु है, साध्वी है।
ReplyDeleteसही कहा आपने..!!
मन चंगा तो कथरोट में गंगा। ईश्वर की ईच्छा के बगैर एक पत्ता तक नहीं लिल सकता और जोभी होता है इन्सान के भले के लिए होता है चाहे देर से ही शई,वैसे भगवान के घर देर है अंधेर नहीं..!!
पर एक बात तो ध्हैयान देने योग्य है, राजनीति के किचड़ में कभी कमल नहीं खिलते..!!
किसी ऐसे 'संत' का मार्गदर्शन कराए जिसने राजनीती में सफलता हासिल किया हो???
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! और शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमैं आपके ब्लॉग पे देरी से आने की वजह से माफ़ी चाहूँगा मैं वैष्णोदेवी और सालासर हनुमान के दर्शन को गया हुआ था और आप से मैं आशा करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे आके मुझे आपने विचारो से अवगत करवाएंगे और मेरे ब्लॉग के मेम्बर बनकर मुझे अनुग्रहित करे
आपको एवं आपके परिवार को क्रवाचोथ की हार्दिक शुभकामनायें!
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
you are an intelligent person, but still a human, and are bound by human tendencies and emotions. I had very high respect for you which upto some extent got diluted when i came to know about your marriage, and this act of leaving your Guru's place is yet another emotional act as your decision of getting married was.
ReplyDeleteThat patience is not patience which has some limit to it.
I doubt if anybody forced you to act as you did, all decisions you took, be it association with swamiji or getting married or leaving swamiji, were purely your own. Cause of pain in our life is not getting what we want, this causes us to (re)act in a certain manner which otherwise we would have not. This post of yours indicates that cause of disconnect between you and your guru is that of not getting sanyas and standing for election, you decided to get married when you were not able to get sanyas and decided to leave your guru when your quest for elections were over-ruled. For a moment please think if both these wish's of yours come true will you be able to erase the reactions you have done??
By getting married you have closed the doors for your sanyas, as you will not be doing justice with family if you do.
Hence such decisions which are for life long, need to come from experience and not based on infatuation of a 20 yrs old girl. you may cause pain to people attached with you.
Regards
Shashwat
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ReplyDeletethnx for sharing this....aapko shat shat pranaam....aapne bahut si jigyaasao ko shaant kiya....shayad yehi mein jaan'na chaah raha tha..jisko gautam ji ne anay roop mein liya aur krodh kiya.....fir bhi dil mein jo jigyaasa thi aapne shaant ki..iske liye bahut bahut dhanyawad....gautam ji ko bhi pranam......aur unko krodh dilwane k liye kshama.........
ReplyDeleteprashn ye hai hi nahin ki aapne vivah kyon kiya, kisi ko bhi ye prashn karne ka adhikaar nahin hai. ye aapka nitant niji nirnay hai, aur sirf aapko hi lena tha. hum mitron ka karya to aapko shubhkamnayen dena aur vipreet paristhitiyon me niswarth madad ka sambal dena hai, aur us karya ke liye aap hum par bharosa kar sakti hain.
ReplyDelete14 october ko aapne mere comment par aapni lekh ko sudhar liya parantu punah aapne ek galti kar di appne likha hai ki aap kshtrani na bhi hoti to kshtriyo ke prati aapka samman kam nahi hota. Arre ab to aap kshtrani hai aur hum log aapko kshtrani swikar karte hai. Badhai
ReplyDeleteHamir Pal
Mrs. Chidarpita ! It's your life .You are completely free to take any decision.It's meaningless to expect a justification for your decisions.Since you are going to lead a public life,it's better that you have written this article and came for a discussion,this courage is really appreciable and often Saddhu's and Sadhvi's don't go for such discussions.Ashrams are often blamed for irregularities,monopolies,malpractices and for many other corrupt things, so if you managed your Mumukshu Ashram and saved from such activities,one should really appreciate you.
ReplyDeleteसंन्यास नहीं दिलाया गया तो गृहस्थ जीवन अपना लिया ..वाह ..वाह क्या बात कही है आपने चिदार्पिता जी.बस आपकी प्रशंसा इस बात की करनी होगी की आपने छुपाकर कुछ भी नहीं किया जो भी किया समाज के सामने किया.
ReplyDeletenamskar,bhaut bhaut shubkamnaye....aap chunau bjp se hi....uma ji se koi madad ho to aadesh dena.
ReplyDeleteसबसे पहले तो आपके शादी के निर्णय के लिये बधाई । शादी , सेक्स , प्रेम से अध्यात्म का कोई विरोध मुझे नही समझ में आता है । वैसे तो मैं इश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं कर पाता , कारण ढेर सारे हैं। खैर एक बात आप स्पष्ट कर देंगी तो प्रसन्नता होगी । आपने गौतम जी से विवाह के बाद अपने गुरु के विषय में बताया है , वे शराब का सेवन करते हैं , मैने उसे पढा है और अपने वेबसाइट पर भी पोस्ट कर दिया है , क्या वाकई चिन्मयानंद वह सब करते हैं जो गौतम जी को आपने बताया है ? उसके बाद भी आप उन्हें अपना गुरु मानती हैं , क्यों ? क्या आपको लगता है जो वे करते हैं वह एक संत को करना चाहिये ? अगर वह सब उचित है तो फ़िर वह स्वीकार क्यों नहीं करते ? आदमी उस काम को नही स्वीकार करता जिसके बारे में उसे स्वंय लगता है कि गलत है । आपके जवाब की प्रतिक्षा में ।
ReplyDeleteसबसे पहले तो आपके शादी के निर्णय के लिये बधाई । शादी , सेक्स , प्रेम से अध्यात्म का कोई विरोध मुझे नही समझ में आता है । वैसे तो मैं इश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं कर पाता , कारण ढेर सारे हैं। खैर एक बात आप स्पष्ट कर देंगी तो प्रसन्नता होगी । आपने गौतम जी से विवाह के बाद अपने गुरु के विषय में बताया है , वे शराब का सेवन करते हैं , मैने उसे पढा है और अपने वेबसाइट पर भी पोस्ट कर दिया है , क्या वाकई चिन्मयानंद वह सब करते हैं जो गौतम जी को आपने बताया है ? उसके बाद भी आप उन्हें अपना गुरु मानती हैं , क्यों ? क्या आपको लगता है जो वे करते हैं वह एक संत को करना चाहिये ? अगर वह सब उचित है तो फ़िर वह स्वीकार क्यों नहीं करते ? आदमी उस काम को नही स्वीकार करता जिसके बारे में उसे स्वंय लगता है कि गलत है । आपके जवाब की प्रतिक्षा में ।
ReplyDeleteएक और बात दुनिया के हर धर्म में भगवान मर्द हीं क्यों है? धर्म गुरु मर्द हीं क्यों हैं।?
ReplyDeletefacebook se apke blogg par aya.
ReplyDeleteek bar fir se apke naye jeevan ki mangal kamnaye wa badhai.
par aj apko jetna padha,,,usase ek sawal ubhar kar agya. bura na mane.
Ap ek dibya gyan ki kung hote huwe bhi 11 shalo tak apne guru ki mansikta ko nahi samjh pae??
Guru jiska pahla dharm hota hi apne shisya ko duniya ke unchai par pahuchana...aur jo apke chunaw ladne ki bat sunkar bhadak uthata hi..isase uski mansikta aur guru dharm par ??? mark lag jata hi.
ap ne jo 11 shalo ka jeevan bitaya wo apke swabhiman aur samman ka hissa hi.. par abhi ap sunya par khadi hain....iswar apko apar shakti de.
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Anonymous & sunil chauhan,
in logo ko mene badha..
school me balako ke palak to kuchh aur hi kah rahe hain...!!
Me balak hun apko kuchh kahna surya ko diya dikhane ke barabar hai.
ap in kahne walo ki taraf dhyan na dijiye..... ye kahne wale to sheeta mata ko bhi nahi chhode the.
Bahut najdik se to nahi..
par gautam bhaiya ko f.b se janta hun aur unhe badhe bhai ki tarah manta hun,,, wo bahut hi dreed ischha shakti ke swami hain.
iswar ke kripa hi ap par ki apko unka sath mila.
@ravi-ek baar shahjahanpur aakar dekho...
ReplyDelete@Anonymous...
ReplyDeletekya dikhana chahte hain ap?
wese apne amantrit kiya hai to ... awasar milate hi me jarur aunga.
Bahut dur nahi hun shahjahapur se..
Devi ji , sanyaas to man ka hota he, bus aapka man prabhu seva me laga rahe.
ReplyDeleteOm Namo Narayan.
sanyash ... arthat ... swayam mein swayam ki parnput sthapana .... swyam ko janiye swyam ko swyam mein jagrat kariye yahi sanyash hai .... haan ... yah kathan/tathya purnataya bhramak hai k streeo ko sanyash diksha dena shashtra sammatt nahi .. athava niyam viparit hai . param hans ka udaharan yaha kuchh nyay sangat nahi ... aap jo kar chuki hai use parivartit nahi kar sakti ... haan use ek adarsh rup mein prastut kar sakti hai ... sanyash k liye patrata hona avshyak hai ... kehte hai kayi kayi janmo tak ikshit sanyash sadhna karne par guru diksha se sanyash prapt hota hai .... man mein dukh n rakhiye ... aur jitna ban pade sanyash dharan kijiye ... kalayan ho .
ReplyDeleteनिर्णय प्रशंसात्मक और शास्त्रीय । ओ३म् !
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