कहते हैं, श्रीमती गांधी की
वर्तमान में उनके पति से पहली भेंट हयात के डिस्क ‘घूँघरू’ में हुई थी। ज़ाहिर है, वे
डिस्क में खादी की साड़ी पहनकर तो नहीं गयीं होंगी। वे कुछ भी पहन लें, उन पर बलात्कार तो दूर
छींटाकशी तक करने की हिम्मत नहीं किसी में। एक बार एक दुस्साहसी ने सैंकड़ों मील दूर से
उन्हें एक प्रेमपत्र लिखा था। ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा
में रहने वाली के साथ बेचारा और कर भी क्या सकता था? महीनों, हफ़्तों, दिनों में
नहीं, पुलिस ने घंटों में उसे ढूंढ निकाला था। क्यों भला? आप सुन्दर हैं तो स्वाभाविक है, कि
पुरुष आपकी ओर आसक्त हों और आपको प्रेमपत्र लिखें। उनका अधिकार है यह। खैर! जाने दीजिये। मुद्दा वह महिला
नहीं है। इस देश की हर महिला की तरह वह भी सुरक्षा और सम्मान की अधिकारिणी है।
मुद्दा यहाँ केवल और केवल महिला की सुरक्षा है। बात चाहे कुमारी गांधी की हो, कुमारी चिदंबरम की या कुमारी सिंह की, इनकी ओर आँख उठाने का साहस नहीं किसी में। कुछ भी पहनने और किसी भी समय कहीं भी आने-जाने में इनकी सुरक्षा पर आंच नहीं आती। इनके अलावा वे लड़कियां भी सुरक्षित हैं जो अपनी लक्ज़री कार से घूमती हैं। अपनी काले शीशे चढ़ी कार में वे माइक्रो मिनी पहनकर क्यों न बैठी हों, रास्ते चलते हसरत भरी निगाह से उन्हें घूर भर सकते हैं, छूने की तो सोच भी नहीं सकते। सुरक्षित वे लड़कियां नहीं हैं, जो देर रात तक ऑफिस में काम करती हैं। कभी-कभार ऑफिस के बाद मित्रों के साथ मनोरंजन के पल बिताना उनका बहुत बड़ा अपराध है। उन्हें कोई हक नहीं, आधुनिक कपड़े पहनने का, मूवी देखने का। इसकी सज़ा तो उन्हें मिलनी ही चाहिए। औकात क्यों भूल जाती हैं अपनी? अधिकांश कॉल सेंटर और मल्टीनेशनल कंपनियों में ड्रेस कोड है और उन्हें चाहते न चाहते हुए भी स्कर्ट और पैन्ट्स ही पहनने हैं तो क्या, हम तो जींस पहनने पर उनकी आलोचना करेंगे। क्या ज़रूरत है उन्हें ऐसी कंपनी में काम करने की? टीचर बन जाती, किसी के घर बर्तन मांजने का काम कर लेती, जिसे अपनी इज्ज़त की परवाह हो वो पैसा, स्टेटस, ग्लैमर थोड़े ही देखता है?
मुद्दा यहाँ केवल और केवल महिला की सुरक्षा है। बात चाहे कुमारी गांधी की हो, कुमारी चिदंबरम की या कुमारी सिंह की, इनकी ओर आँख उठाने का साहस नहीं किसी में। कुछ भी पहनने और किसी भी समय कहीं भी आने-जाने में इनकी सुरक्षा पर आंच नहीं आती। इनके अलावा वे लड़कियां भी सुरक्षित हैं जो अपनी लक्ज़री कार से घूमती हैं। अपनी काले शीशे चढ़ी कार में वे माइक्रो मिनी पहनकर क्यों न बैठी हों, रास्ते चलते हसरत भरी निगाह से उन्हें घूर भर सकते हैं, छूने की तो सोच भी नहीं सकते। सुरक्षित वे लड़कियां नहीं हैं, जो देर रात तक ऑफिस में काम करती हैं। कभी-कभार ऑफिस के बाद मित्रों के साथ मनोरंजन के पल बिताना उनका बहुत बड़ा अपराध है। उन्हें कोई हक नहीं, आधुनिक कपड़े पहनने का, मूवी देखने का। इसकी सज़ा तो उन्हें मिलनी ही चाहिए। औकात क्यों भूल जाती हैं अपनी? अधिकांश कॉल सेंटर और मल्टीनेशनल कंपनियों में ड्रेस कोड है और उन्हें चाहते न चाहते हुए भी स्कर्ट और पैन्ट्स ही पहनने हैं तो क्या, हम तो जींस पहनने पर उनकी आलोचना करेंगे। क्या ज़रूरत है उन्हें ऐसी कंपनी में काम करने की? टीचर बन जाती, किसी के घर बर्तन मांजने का काम कर लेती, जिसे अपनी इज्ज़त की परवाह हो वो पैसा, स्टेटस, ग्लैमर थोड़े ही देखता है?
मुझे दया आती है
इन दोगलों पर। आज पति जब लोन पर घर और कार लेता है तो उसकी किश्तों में
पत्नी का वेतन बिना पूछे और बिना संकोच के शामिल होता है। अधिकांश पिता चाहते हैं कि उनकी बेटी अपनी
कमाई से अपनी शादी के खर्च में सहयोग करे। कितने भाई अपनी कंवारी बहन को उसके खर्च के
लिए पैसे देते हैं? कमाना आज स्त्री का शौक नहीं रहा, बल्कि ज़रूरत बन गयी है। न सिर्फ उनकी,
बल्कि घर-परिवार की भी। शहरों की बात
छोड़ते हैं और गाँवों में आ जाते हैं। किसी पहाड़ की यात्रा पर जाएँ तो ध्यान दीजियेगा, अधिकाँश पुरुष सड़क के किनारे
बीड़ी फूंकते और ताश खेलते दिखेंगे। वहीँ, महिलायें, सिर पर घास का गट्ठर ढोती,
खेतों में काम करती दिखेंगी। मैदानों में भी यही हाल है। खेतों में महिलायें बराबर का काम करती हैं।
आप जब सुरक्षा के
नाम पर उसे घर में कैद करने की पैरवी कर रहे हैं तो उसे केवल और केवल घर के कामों
तक ही सीमित क्यों नहीं रखते? नौकरी वह करे, खेतों में काम वह करे, बराबर कमाए और
सब आपको सौंपकर घर में घूंघट निकालकर बैठ जाए? इस तरह घर-बाहर की दोहरी ज़िम्मेदारी
निभाने वाली महिलाओं का जहाँ अधिक आदर होना चाहिए, वहीँ उन पर छींटाकशी चरम पर है। वह इसलिए असुरक्षित नहीं है कि वह सूट या साड़ी
नहीं पहनती। वह असुरक्षित है
क्योंकि वह कार से नहीं, बस से आती-जाती है। वह असुरक्षित है क्योंकि उसके पास जेड श्रेणी की सुरक्षा नहीं है। वह असुरक्षित है
क्योंकि उसके लिए लड़ने वाला कोई नहीं, जबकि उस पर टिपण्णी करने वाले अनगिनत हैं। बड़े-बड़े तीसमारखाओं के घरों की महिलायें
शादी-ब्याह में सज-धज कर जाती हैं, क्यों? इसीलिए तो कि वहां बहुत से लोग होंगे। ऐसे में एक ऑफिस
जाने वाली महिला, जिसे दिन में सैंकड़ों लोगों से मिलना है, सजती है तो क्या गुनाह
करती है? सजना परपुरुष को रिझाना है तो आपके रूढ़िवादी घर की महिलायें साल में कम
से कम चार बार ऐसा करती हैं। किसको रिझाती हैं वे? पति, भाई, पिता, बेटे के साथ देर रात
को शादी से लौटती ऐसी सजी-संवरी महिला का बलात्कार हो गया तो किसे दोष देंगे आप?
एक सर्वे में पढ़ा
था, कि पुरुष ढंकी हुई महिला के प्रति अधिक आकर्षित होता है। अब कहा जा रहा
है कि महिला को कम कपड़ों में देखकर वह उत्तेजित हो जाता है। सच तो यह है कि
प्रकृति के विधान में स्त्री और पुरुष बाकी प्राणियों की तरह केवल नर-मादा हैं। नर मादा की ओर आकर्षित होगा ही होगा, यह
प्रकृति का नियम है। सामाजिक नियमों और रिश्तों में बंधकर हम प्रकृति के इस
नियम को चुनौती देते हैं और यह चुनौती ही मानव को बाकी जानवरों से अलग करती है। महिलाओं के उत्तेजक कपड़े, मेकअप आदि सब आपके
बहाने हैं, कुतर्क हैं। सच तो यह है, कि आप प्रकृति के इस नियम में बह गए और इंसान
की पहचान, उसके संयम और सामाजिकता को भुला बैठे। यदि आप सोचते हैं कि आपने समाज के न सही, प्रकृति के नियम का पालन किया है तो
अपने इस वहम को भी दूर कीजिये। कभी सोचा कि मोर
क्यों नाचता है? नर कोयल क्यों घंटों कूकती है? नर तितली अपने पंखों से किसे रिझा
रही होती है? कबूतर इतना मटकता क्यों है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्रकृति में
नर अपनी मादा को रिझाता है, उसका बलात्कार नहीं करता। अपने दैहिक आकर्षण की सीमा तक ही आप प्रकृति के नियम में बंधे रहे। बलात्कार जैसे कुत्सित चेष्टा के अस्तित्व में
आते ही आप प्रकृति के नियम के भी विरुद्ध हो गए। आप न सिर्फ समाज, बल्कि प्रकृति के भी अपराधी
हैं। न तो आप सामाजिक नियमों
में बंधे इंसान बन पाए और न ही प्रकृति के नियमों में बंधे जानवर।
Wrote very nice right from heart...but a lot of people would not approve this statement due to false ego.
ReplyDeleteFalse ego or call it their insecurity.
DeleteVery nice and true also
ReplyDeleteis bahas ka ant nahi
ReplyDeletehummm....
Deleteविपरीत लिंग का प्राकृतिक आकर्षण एक नैसर्गिक सत्य है, जिस कारण पशु पक्षी भी इस से अछूते नहीं है, किन्तु प्रजाति रक्षण हेतु यह उनकी वार्षिक आवश्यकता है . मानव के लिए भी यह विधान है की वह केवल संतानोत्पत्ति के लिए ऋतुकाल में ही प्रणय सम्बन्ध बनाए न की भोग अथवा वासनापूर्ति हेतु किन्तु आज फिल्मों और विज्ञापन में महिलाओं का जैसा चित्रण किया जा रहा है और जिस तरह से लडकियों में बॉयफ्रेंड कल्चर को प्रमोट किया जा रहा है, वह युवक - युवतियों में भोगवादी संस्कार जगा रहा है और भारतीयता की दृष्टी से मुझे यह चिंताजनक लगता है. और मेरा मानना है महिलाओं में पुरुषों से कहीं अधिक कर्तव्यबोध इमानदारी और करुणा होती है इसलिए महिलाओं को आगे आकर समाज में अपना योगदान देना चाहिए और वो ऐसा कर भी रही हैं .एक दुसरे पर दोषारोपण करने से बेहतर होगा उन दुशाशानो के विरुद्ध संघर्ष करने का जो रजस्वला द्रोपदी को भरी सभा में घसीट कर लायें है.
ReplyDeleteऔर उस संघर्ष की शुरुआत होगी कुतर्कों को तोड़ने से...
Deleteयह केवल बहस का मुद्दा नहीं है बल्कि यह आत्म-मंथन का विषय है। मुझे लगता है कि हम इसे बहस का मुद्दा मान कर मुद्दे की केवल इतिश्री ही कर रहे हैं। समाज मैं परिवर्तन केवल बहस से नहीं होगा , वरन स्वयं मैं परिवर्तन लाने से होगा। हमें अपनी सोच को बदलना होगा और भारतीय संस्कारों की पुनः स्थापना करनी होगी।
ReplyDeleteभारतीय संस्कार पूर्णता से लागू होने चाहियें...एक तरफा पहल कोई मदद नहीं कर पायेगी
DeleteBilkul Sahi.
ReplyDeleteधन्यवाद्
DeleteBilkul Sahi.
ReplyDeleteSorry ! I hurt You.
ReplyDeleteतर्क से आहत नहीं होती..होना भी नहीं चाहिए
Deletebahut uttam bichar hai appke,
ReplyDeleteapp jaisi aurato ko aage aana hoga.
bichar ya abhibyakti ko amlijama pahnana jaruri hai
bichar ko sadko par lana hoga.............. sadhviji sadhubad.
जी
DeleteI appreciate your thoughts. whatever you said is very true and logical. you.
ReplyDeletewe are human beings we have spirit in us but that spirit is sleeping, because we stopped to liston our intuition to our heart.
what ever happening around us is the outcome of too much brain working.
Now days brain is controlled by dark powers as our spirit is not active.
I pray for Spiritual Awakening in the people of our country.
एक दम सही कहा आपने
ReplyDeleteन इंसान
न जानवर
बन गए हैवान
aap antatah kahna kya chahti hai.....????ki pashchim ka andhanukaran, call center aur MNC me kaam karna jahan par pent shirt or skirt cumpulsory hai.......boyfriend ke saath movie jaana, aur disco aur party me apne hafte bhar ya din bhar ke thake hue man ko vishraam dena.....ye sab aaj ki jaroorat ban gayi hai..........Ye aap jaisi Sadhvi kah rahi hai..........mujhe pata hai kuch kuch aapke baare me ki kaise aapne apne Sadhu jeevan se Grasth jeevan me pravesh kiya..........
ReplyDeleteKya hamaari Bhatiya Sanskriti ki Sadgi aur Sayyam koi mahatta nahi rakhta aajkal jeevan jeene ke liye.............ye kis buddhimaan vaykti ka tark hai ki agar aap disc nahi jaate, ya aapke paas boyfriend nahi hai, ya phie aap BPO aur kisi MNC me kaam nahi karte to apka koi status nahi hai.............aur us status ko paane ke liye aap kuch bhi karne ke liye tayyar rahengi..........
Mai apko bataun mai ek ladka hokar........aajtak kisi disc me nahi gaya ya phir is boyfriend-girlfriend ke chakkar me nahi pada aur jeevan me koi kami nahi hai aur na hi kabhi koi shikayat hai apni
jeevanshaili se kyonki ma jaanta hun ki mai kis pariwaar se hun aur mujhe apni bhartiya sanskriti anusar hi apna jeevan chalana hai...............
yahan par aap do baato ko mix kar rahi...........ek aapne kaha ki jeevikoparjan aur manoranjan................harek BPO aur MNC jo bhi night shift me girls ko job deti hai uski security ka jimma bhi lete hai aur vo bakayada CAB se unko suraksith GHAR tak pahunchati aur mera apna personnel expreince bhi hai..........phir jab koi maoranjan ke liye nikla hai.........tab baat kuch hai tab yahan par koun si majboori hai.........jo unko raat ke 12-1 baje tak sadko par ghumne ke prerit kar rahi hai......aur khule me premalaap (janvaro ki tarah)karne ke aamantrit kar rahi hai............??????????????????
maine personnely ye sab delhi METRO aur Noida ke kai ilaako me ye sab dekha hai..........hamaari shreni ke log us mental setup tak aa chuke hai ki ham log sayamit hai un sabko dekhkar..........magar ek anpadh, ganwar(yahan ganwar matlab gaanv wala nahi hai), jaahil aadmi is sab PASHCHIM aaandhi me paagal sa ho gaya hai..........uski dharmik shiksha nahi hai.........uske sanskaar mar
rahe hai.........aur usi pagalpan aur bechaini me vo hamla kar raha hai................is sabse aahat hokar aap pure purush samaaj ko doshi nahi thahra sakti aur hamaare Bhaitiya jeevanshaili ko Pashchtya chakachodh se kamtar nahi kar sakti............
mai un balaatkaarion ka dhur virodhi and sabse bada nindak hun.......
yahan ek baat aur jod dun ki aadivaasi samaaj me is tarah ki ghatnaayen na ke baraabar hain.........aisa tathya kai baar saamne aa chuka hai..........so ve to nire anpadh hain............
to ab apka tark hoga vahan par aisa kyon nahi hota................yahan par jad ki baat hai..............ek GAHRI KHAAI.............do jeevanshaili ki.......akraman hamesha ek gahri khaai ko paatne ke liye hi hota hai(yahan Yudh se tatparya nahi hai........)aur vishaad ya Ahankaar me paagal vayakti karta hai.........apne ko us nirasha se nikaalene ke liye aur kuch aur naya paane ke jo uske paas nahi ...........ab chahe vo Sikandar ka Akrman ho ya BABAR ka ya kisi bhi jaati ka doosri jaati par, usko jeetne ki lalak ke bal par..........
ab ham apne muddde par vapis aate hai........to isi jeevanshaili ko na paane ki ghor nirasha me vah paagal kamandh vayakti aisi jaanwaro ki harkaten karke apni jeet darj kar raha hai apne beemaar dimaag me...............
mai to ANT-TAH yahi...........kahunga Sadhviji............Dharm ka prachar karo aur Dharm ka prasaar karo..........yahi mul mantra hai isi se samaaj ki shuddhi karo naki jabardasti apne jeevan ko ANGREZI janjeero me jakadkar dogli mansikta ke saath jiyo................
Bate hoti hai vicharo ke abhivyakti ki....,Aur aap jaise kuchh log adeshatmak tarike se samjhane lagte hai ke kise kya karna chahiye aur kya nahi.Agar aap sahmat nahi hai to koi baat nahi lekin kum se kum apne suvichar(?) kisi par ladiye mat sirf asahamati darshane se bhi kam chal sakta hai.
DeleteG.M.
ReplyDeleteVERY TRUE FACT'S........PAR AB AAGE SE AIESA NAHI HOGA
LET'S CHANGE OUR SOCIETY
I HOPE CHANGE WILL COME,QUICKLY
G.M.
ReplyDeleteVERY TRUE FACT'S........PAR AB AAGE SE AIESA NAHI HOGA
LET'S CHANGE OUR SOCIETY
I HOPE CHANGE WILL COME,QUICKLY
Sadhvi Ji apne bahut achha likha hai. Parantu ek do shanka hai. Jin jeevon ka ullekh apne kiya wo mada ko rijhate hein ye theek hai chunki in jeevo mein nar mada se ashik sundar hota hai. mor le lijiye ya titli ko. sher ko lijiye ya hiran ko. lekin wo to naisargik nagn hote hein , nagnata ka pradrshan nahi karte. apka antim vakya akai jaandar hai. Hum dono me se kuchh bhi nahi rah gaye. waise pashu bhi balatkar ki cheshta karte hein lekin hume vivekyukt hone ke nate unse shresth banne ka prayas karna chahiye na ki girne ka.
ReplyDeleteapne likha hai ki kahte ki dhanki hui mahila ko dekhkar aakarshit ho jata hai or ab kahte hein ki kam vastro me dekh kar uttejit ho jata hai. dono baatein theek to hein. aakarshan or uttejna mein achha khasa fark hai. vyarth ki numaih karna bhala mahila to chhodiye purush ko bhi hobha nahi dega. Icchha ko sakar hote dekh man par kabu pane wale ko hi yogi kahte hein, baki aap ko to vihesh anubhav hai.Is vihay mein mein to apse kam hi janta hunga.
ReplyDeleteU R right AS always.......................
ReplyDeleteविचारणीय आलेख
ReplyDeleteसाध्वी जी औम
ReplyDeleteआप में शब्दों से खेलने की असीम शक्ित है... इिसिलए इस लेख में आप हर पक्ष में खड़ी िदखी ...... पाठक आपके इस लेख से िनर्णय तक नहीं पहुंच पाता..... धन्यवाद्
सत्य है.
ReplyDeleteᐈ교교롸 슬롸슬롸 슬롸 슬롸 폰 쁣인 bet365 bet365 카지노 가입 쿠폰 카지노 가입 쿠폰 1xbet 1xbet 663Soccer Betting Odds | VieCasino.com
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