किसान की नज़र आकाश पर टिकी हैं कि पानी बरसे तो उसकी भूख मिटे..धरती में पड़ी दरार मानों खुले होंठ हैं कि बूँद पड़े तो प्यास बुझे..पंछी रेत में नहा रहे हैं, बरखा के इंतज़ार में...किस-किसका नाम लें..सम्पूर्ण जीवन सावन की प्रतीक्षा करता है...भीषण गर्मीं में सागर को अपनी जलराशि कम होने का कोई दुःख नहीं...उसे पता है कि आकाश से अपार जल बरसेगा और उसे पुनः पूर्ण कर देगा...सावन में जीवन बरसता है...जीवन बहता है...जीवन चलता है...हर ओर जीवन का ही साम्राज्य होता है...चातुर्मास में एक जगह रहने का विधान भी इसीलिए है कि इस जीवन की रक्षा हो सके...
धरती में जाने कब से पड़े बीज इस समय उग आते हैं...अनगिनत सूक्ष्म जीव जन्मते हैं तो हमें आँखों से दिखाई नहीं देते...वे पैर के नीचे आकर मर न जायें यह भी एक कारण है चातुर्मास का...
इसी समय शिव पूजन का भी विधान है...कहते हैं कि सावन में ही शिव और सती का विवाह हुआ था...सती प्रकृति हैं...शिव पुरुष हैं...प्रकृति-पुरुष के विवाह से ही जीवन का संचार होता है...इस संसार में जो भी है वह प्रकृति-पुरुष द्वारा संचालित है...प्रकृति शिव की भार्या हैं...हिमालय की पहाडियाँ उनकी जटायें हैं जिनमें गंगा अठखेलियाँ करती हैं...चन्द्र उनके मस्तक की शोभा है...नाद/स्वर(डमरू)उनके हाथ में है...धरती का आधार नाग उनके कंठ की शोभा है...धधकते ज्वालामुखियों को अपने अंदर समेटे नीलकंठ शिव ही हैं...यह ज्वालामुखी फटा, यह हलाहल बाहर आया तो विनाश ही विनाश होगा...शिव के इस रूप को जानना ही शिव आराधना है...इन बारिश की बूँदों में शिव का संगीत है...इन पत्तियों के हिलने में उनका नृत्य है...इसे सुनिए, इसे देखिये, इसमें लीन होकर शिव-शक्ति का ध्यान कीजिये...वे सदा हैं, शिव हैं, सदाशिव हैं...
..शिव के इस रूप को जानना ही शिव आराधना है...इन बारिश की बूँदों में शिव का संगीत है...इन पत्तियों के हिलने में उनका नृत्य है...इसे सुनिए, इसे देखिये, इसमें लीन होकर शिव-शक्ति का ध्यान कीजिये...वे सदा हैं, शिव हैं, सदाशिव हैं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व् सही भावों को आपने यहाँ एक पोस्ट में समेट दिया है.और हमारे अन्दर भी शिव नाम का प्रकाश भर दिया है आभार
sach aur soch me kitna anter hai jaise rop ko dekh kar bhav nahi samje ja sakte hai.
ReplyDeleteशिव तो कल्याण का ही रूप हैं .समस्त जगत का कल्याण करना ही शिव का लक्ष्य है .जय गौरी शंकर जी की .सुन्दर प्रस्तुति .आभार
ReplyDeleteशिव की सत्यम एवं सुन्दरम प्रस्तुति की है आपने साध्वी जी .....आभार!
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ReplyDeleteसब कुछ तो कह दिया आपने। कुछ अशेष नहीं है। अब तो सिर्फ यही कहा जा सकता है--हम शिवजी के,शिवजी हमारे हैं। देवाधिदेव शिव शरणम्
ReplyDeleteमम्। हर हर महादेव, काशी विश्वनाथ की जय। इतना सब पढ़ने-समझने के बाद भी जिसने शिव का अहसास नहीं किया, वह मनुष्य जीवित होते हुए भी शव मात्र है।
हूँ .......... सुन्दर, अति सुन्दर
ReplyDeleteaapney likha on your face book:
ReplyDeleteभगवान 'से' नहीं मिला जाता, भगवान 'में' मिला जाता है..वह कोई व्यक्ति नहीं हैं.. वह शक्ति हैं... ऊर्जा हैं... परम सत्य हैं...उस ज्ञान के प्रकाश में विलीन होना ही अंतिम लक्ष्य होना चाहिये...
Then why you worship SHIV. He has human body.
Sajal
@ Sajal...and how do you know that?
ReplyDeleteशालिनी जी, शिखा जी, सरोज जी, अवध जी, मदन मोहन जी, गौतम जी..आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद मेरे लिखे को समय देने के लिये...
ReplyDeleteAgar Bhagwan Nirakaar, Urja, Shakti hai to ham ussey alag alag roop kyon deten hai. Kyon ham sirf Urja ko poojtey hain.
ReplyDeleteRegards
Sajal