Monday, May 28, 2012

अभिव्यक्ति: एक आवश्यकता

लोग उसे आज से पहले तक सौभाग्यशाली कहते थे क्योंकि उसके सिर पर पिता का साया था, पर उसने खुद को इस बात के लिए कभी सौभाग्यशाली नहीं माना। आज वह साया उसके सिर से उठ गया था, पर जाने क्यों उसकी आँख से एक आँसू नहीं गिरा। वह एक पत्थर बनकर सारी क्रियाएँ करता गया। लोग उसकी यह स्थिति देखकर समझ रहे थे कि उसे पिता की मृत्यु का गहरा सदमा लगा है, जबकि उसे दुख जैसी कोई अनुभूति ही नहीं हो रही थी। पिता कभी थे भी उसे यह एहसास ही नहीं हुआ। बचपन से ही पिता को एक जेलर के रूप में देखा था। उनसे कभी कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई। एक अनजानी सी दूरी बनी रहती थी। उन्होने कभी उसकी सफलता पर पीठ नहीं थपथपाई। कभी प्यार से पूछा नहीं कि, उसके मन में क्या है। यह कहानी है अनुज की जिसका मन पिता के प्रति बदल गया जब उसने पिता की तेहरवीं के बाद एक दिन उनकी डायरी पढ़ी। उस डायरी को पढ़ कर वह फूट-फूट कर रोया। डायरी में पिता स्नेह का एक सागर थे। जितनी बार वह बीमार पड़ा, रात भर में उसने कितनी बार करवट बदली, पिता को पता था। उसकी हर सफलता पर उन्होने उसे कोटि-कोटि आशीर्वाद दिया था। जाने कितनी जगह लिखा था कि वह उसमें अपना हर सपना जीते हैं। जाने कितनी जगह उसे दुनिया के सब लड़कों से अलग बताया था। जाने कितनी जगह उसकी तारीफ में उसे श्रवण कुमार तक कह गए थे। पिता उससे इतना प्यार करते थे, उसे कभी एहसास ही नहीं हुआ। पिता के जाने के तेरह दिन बाद आज पहली बार उसे लगा कि वह अनाथ हो गया है। उसने पिता का वह असीम स्नेह खो दिया है। यह कहानी अकेले अनुज की नहीं है, बल्कि घर-घर की है। कभी हम खुद को अभिव्यक्त नहीं करते और कभी दूसरों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में बाधक बन जाते हैं। पुरुष प्रेमिका के सामने अपने प्रेम के प्रदर्शन के हजारों तरीके खोजते हैं, पर पत्नी के सामने आने पर उन्हें यह सब व्यर्थ लगता है। बच्चे माँ-बाप के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं करते। पिता तो अधिकांश परिवारों में मानो डराने के लिए प्रयोग किया जाने वाला बिजूका ही हैं। प्रेम अभिव्यक्ति के बिना अधूरा है। आपके मन में क्या है, यह आपके व्यवहार से ही पता चलता है। आपके मन के अंदर कौन झांक सकता है? आपके द्वारा अभिव्यक्ति न करने से आपसे जुड़े लोग आपसे दूरी बना लेते हैं। यह दूरी जब दोतरफा हो जाती है तो रिश्ते बचाना बहुत मुश्किल हो जाता है। आज परिवारों के सिकुड़ने और टूटने का बहुत बड़ा कारण ही यह है। आम भाषा में इसे ‘कम्यूनिकेशन गैप’कहते हैं, पर यह उससे कहीं अधिक बड़ी समस्या है। यहाँ कारण न तो समय का अभाव है और न ही भौगोलिक दूरी। यहाँ कारण अनचाहा सा वह दायरा है, जिसके होने से कोई खुश नहीं है। न दायरे के अंदर वाला और न ही उसके बाहर खड़ा। बहुत ही चिंता की बात है कि जिनके साथ हम अपने जीवन का सबसे बड़ा हिस्सा बिताते हैं, उन्हीं से मन की बात नहीं कह पाते। पत्नी जो बात पति से नहीं कह पाती ट्रेन में मिली किसी अनजान महिला से कह लेती है। पति जो बात पत्नी से नहीं कह पाता वह सहकर्मी से कह लेता है। कर्मचारी बॉस से जो नहीं कह पाते वह चाय लाने वाले लड़के से कह लेते हैं। बच्चे माँ-बाप से जो बात नहीं कह पाते वह अपने दोस्तों से और यहाँ तक कि आंटी-अंकल से कह लेते हैं। कहीं न कहीं इसका कारण अभिव्यक्ति का अभाव ही है। न हम खुद को अभिव्यक्त करते हैं और न दूसरे को इसकी स्वतन्त्रता देते हैं। अक्सर पुरुषों के लिए यह गर्व का विषय होता है कि, उनकी पत्नी उनके आगे मुंह नहीं खोल सकती, बच्चे आँख मिलाकर बात नहीं कर सकते। क्षमा कीजिये, यह गर्व का नहीं शर्म का विषय है। मन में रह जाने वाली अबोली बातें रिश्तों को घुन की तरह चाट जाती हैं। जो बात पति से ही कहने की है वह उससे न कह पाओ तो पति दुनिया का सबसे पराया व्यक्ति बन जाता है। जो बात पिता से कहने की है उनसे न कह पाओ तो पिता से दूर कोई नहीं लगता। इस अकारण बंधन से उबरिये और अपनों को ‘अपना’ बनाइये।

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