Thursday, July 21, 2011

स्वामी शुकदेवानंद सरस्वती - एक आलोक पुरुष

आज एक ऐसे संत का निर्वाण दिवस है जिन्होंने विद्यालयी शिक्षा तो प्राप्त नहीं की पर अपने ज्ञान से साहित्यकारों से लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति तक को प्रभावित किया..उन्होंने देश के पिछड़े इलाकों में जाकर शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की...वे सभी शिक्षा संस्थाएं आज मील का पत्थर हैं... यह वही संत थे जिन्होंने स्वाधीनता के बाद देश की सात्विक चेतना को संगठित कर उसे सार्थक दिशा दी और भारत साधु समाज जैसी संस्था की स्थापना की...सुदूर हिमालय की पहाड़ियों में जहाँ साँप-बिच्छुओं का डेरा था वहाँ प्रार्थना और आरती के स्वर गूंजते हैं तो यह उन्हीं का तप है...गंगा के निर्मल प्रवाह को निरंतर निहारने वाले वे महापुरुष स्वयं भी गंगा की ही तरह निर्मल और यावद जीवन जीते हुए निरंतर चलते रहे.... वे पुण्य आत्मा थे मेरे पूज्य ब्रह्मलीन श्री स्वामी शुकदेवानंद सरस्वती जी महाराज, जिन्होंने इस देश को स्वामी धर्मानंद, स्वामी सदानंद, स्वामी अमृतानंद और स्वामी चिन्मयानन्द जैसे प्रतिभाशली संत दिये...शाहजहांपुर की शिक्षण संस्थाओं से लेकर हिमालय की ऊँचाइयों पर बने परमार्थ लोक, बद्री नाथ तक जनहित में तत्पर, शिक्षा और आध्यात्म के इस आलोक पुरुष को शत-शत नमन...उनकी निर्वाण तिथि पर मैं उन्हें अपनी श्रद्धा के सुमन अर्पित करती हूँ..और कामना करती हूँ कि उनका आशीर्वाद प्रेरणा बन हमें शक्ति प्रदान करे कि हम उनकी दी हई परंपरा का गौरव बनाये रखें...

4 comments:

  1. भारत संतों की जन्मस्थली है। जितने जीवनदानी यहां हुए, उतने संसार में नहीं। निष्काम, जन सेवा को समर्पित संतों की धरती है यह। बस अफसोस यही है कि इन संतों से हमारे नेता प्रेरणा नहीं पाते, भ्रष्ट अफसर संतों की शरण में अपने कष्टों से छुटकारा पाने तो जाते हैं, लेकिन उनका अनुसरण उनका प्रवृत्ति नहीं। स्वामीश्री को कोटि कोटि नमन, श्रद्धा अर्पण। स्वामीश्री के बारे में और विस्तार ले लिखे, लोग लाभान्वित होंगे।
    रामप्रकाश

    ReplyDelete
  2. आपके नमन के साथ हमारा भी इन महान संत को नमन

    ReplyDelete
  3. धर्म रूढी को नहीं कहते ! धर्म वह है जो ईश्वर मै समाहित करा देता है ,धार्मिकता तथा-कथित संत ,महात्माओं के विचारो मै तो है लेकिन उसका अनुकरण तथा आचरण नहीं किया जाता है ! शिक्षक संसार मै बहुत होते है किन्तु उनको अपने क्रियात्मक जीवन मै लेन वाले सूक्ष्म होते है ! धर्म का नाम है 'कर्तव्य-पालना '...
    आज आदरणीय साध्वी जी को हम नमन करते है, की ऐसे महान संत शुकदेव जी का हमें परिचय दिया ..महर्षि वशिष्ठ के अनुसार मानव , किसी भी लोग - लोकांतर मै या निर्जन स्थानों मै चला जाये वो अपने कर्तव्य को पालना करने का नाम धर्म है ( धारणात-धर्म उच्यते ) कर्म- रुपी धर्म को जीवन मै धारण करने पर धर्म कहा जाता है ,उसे ऐसे महान संतों ने जाना..... हम नमन करते है

    ReplyDelete
  4. बहुत-बहुत धन्यवाद रामप्रकाश, शालिनी कौशिक, अनजान मित्र

    ReplyDelete