कई दिनों की लगातार बारिश के बाद तेज़ धूप खिली थी। रुका जीवन कुछ गति पकड़ने लगा था। बाहर निकली तो देखा कि सड़क पर मजमा लगा हुआ है। तनिक पास जाकर देखा तो एक अनोखा ही दृश्य था। बहुत सारे लोग एक विक्षिप्त से दिखने वाले व्यक्ति को घेरकर खड़े थे। वह आकाश की ओर उंगली कर चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था, “मैं ईश्वर की शपथ खाकर कहता हूँ कि यह सूरज नहीं चाँद है। तुम शिव की कसम खाकर
कहो, कि यह चाँद नहीं सूरज है।” अब उस पागल की बात
पर कौन कसम खाकर भरी दोपहर सिर पर चढ़े सूरज को सूरज बताता। सब चुप रहे और जवाब न मिलने पर उसका दौरा बढ़ता गया। वह पास खड़े लोगों के
कपड़े खींचकर, बाजू हिलाकर, दाँत पीसकर और उन्हें झिंझोड़कर अपना आग्रह दोहराने लगा था।
वह किसी पर हमला करता इससे पहले ही पीले कपड़ों में लिपटी एक देवमूर्ति सी
महिला वहाँ आई और बोलीं, “मैं कसम नहीं खाती बेटा, पर जो तुम कहते हो वही सत्य है।” इतना सुनते ही वह
पागल शांत हो गया और एक किनारे जाकर बैठ गया। उसके बैठते ही भीड़ भी छंट गयी। मुझे
इच्छा हुई कि उस पागल और उस दिव्य विभूति का संबंध जानूँ। मैं महिला के पास गयी। बिना कुछ कहे
ही वह मेरे आने का प्रयोजन समझ गईं। शांत भाव से बोलीं, “किसी समय यह एक बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति था, पर इसने अपनी
बुद्धि को सही काम में न लगाकर छल-कपट में लगाना शुरू कर दिया। छोटे-बड़े सब एक बार
तो इसकी चाल में आ ही जाते। अपने इस गुण पर यह मुग्ध था। पहले लोगों फायदा उठाता और फिर उनसे दुश्मनी ठान लेता। थोड़े दिन में ऐसे दुश्मनों की संख्या बहुत बढ़ गयी। अब
जैसे ही यह किसी से अधिक बात करता इसके शिकार बन चुके लोग इसकी सच्चाई उसके सामने
खोल देते और इसकी एक न चलने देते। अब यह परेशान हो गया। अपने इलाके को छोडने की
हिम्मत नहीं थी, तो वहाँ बैठे-बैठे ही बाहर के लोगों को
फँसाने लगा। अधिकांश शिकार महिलाएं ही होतीं। धीरे-2 लोग इसकी चालाकी
समझने लगे। जब इसके झांसे में किसी का भी आना बंद हो गया तो निराशा बढ़ गयी और यह पागल हो गया। मैं द्रवित होकर बोली, दीदी, लोगों को मूर्ख बनाने की इतनी बड़ी सज़ा! ईश्वर का न्याय कुछ समझ नहीं आया”। वह बोलीं नहीं, ईश्वर के न्याय पर शंका मत करो। इसने बहुतों का जीवन ऐसे बर्बाद किया है कि, उससे आसान तो मौत होती। इसके पागल होने के पहले की आखिरी घटना भी सुनाती हूँ, ध्यान से सुनो। मेरे पाँव चिपक गए। वह बोलने लगीं, “छोटी-मोटी ठगी का काम इसे कुछ उबाऊ लगने लगा तो इसने एक बड़ा हाथ मारने की ठानी, जिससे जीवन भर का इंतजाम हो जाये। इस बार इसने इस काम पर खर्च करने के लिए अपने साथियों और अपने शिकार का विश्वास जीतने के लिए परिवार के लोगों को भी अपने साथ मिला लिया। पुराना शातिर तो था ही, आखिर शिकार इसके जाल में फंस गया। इस बार का शिकार एक भोली लड़की थी जिसकी ईश्वर में दृढ़ आस्था थी।
इसने उससे विवाह कर लिया। वह लड़की तन-मन-धन से समर्पित हो इसके साथ रहने लगी। घर का हर काम, आने वालों का स्वागत से लेकर इसकी सेवा तक ऐसा कुछ नहीं था जिसमें वह कोई कोताही
करती। वह दिल से यह भी चाहती थी कि यह कोई काम करे। इसने उसे दिखाने को एक झूठ-मूठ
का काम भी शुरू किया जिसमें उस लड़की ने पैसे के साथ-साथ अपनी आत्मा तक डाल दी। बेहद कमजोर हो चुके शरीर के साथ घर का सारा काम करने के बाद वह रात के
तीन-तीन बजे तक जागकर इसके काम में मदद करती। यह झूठे को भी कह देता की पैर में दर्द है है तो वह घंटों बैठकर इसके
पैर दबाती। प्यार से बात कर लेता तो बच्चों जैसे खिलखिलाती। उस लड़की के भोलेपन, निश्छल प्रेम और निष्ठा का असर था कि जिसे यह केवल एक
शिकार समझकर लाया था कुछ समय बाद इसे उससे सच में मोह हो गया। अब अजीब स्थिति थी। कभी मन पर मोह हावी हो जाता तो कभी लालच। यह दोनों के बीच अपने को बंटा सा महसूस करता। पर यह स्थिति केवल मन के अंदर की थी। बाहर यह अपने काम को प्लान के अनुसार ही अंजाम
दे रहा था। अपने लालच में इसने लड़की का नाम, इज्ज़त और उससे जुड़ी हर वस्तु-व्यक्ति का उपयोग अपने हित में किया। इस क्रम में इसने उस लड़की को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। यह उसे हर छोटी बात पर या बिना बात के दरिंदों की तरह
मारता ताकि वह इससे डरी रहे और इसके कहे हुए के बाहर जाने की सोचे भी
न। वह दिन भर इसका चेहरा देखती रहती। चेहरे पर मुस्कान होती तो जी जाती। इसे गंभीर
देखते ही वह इसका दरिंदे वाला रूप याद कर सहम जाती। अपने इसी डर में वह दिनों-दिन सूखने लगी। वह जीना भूल गयी थी और एक कैदी की भांति रहने लगी थी। यह पंद्रह-बीस दिन में उसे एक बार बाइक पर बाहर का एक छोटा सा चक्कर
लगवा कर घर छोड़ देता। इसने लड़की का सारा धन ले लिया। लड़की ने भी समर्पण भाव से
बिना सवाल सब सौंप दिया। इसके बाद भी वह नौकरी करके घर चलाने को खुशी से तैयार थी। पर, इसका लालच उसके वेतन से पूरा नहीं होता। एक साल होने जा रहा था और यह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी का पेट
फाड़ने की तैयारी कर रहा था। बाहर बैठकर यह बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाता पर घर आते ही उस लड़की
का मुस्कराता चेहरा, हाथ में सजी भोजन की थाली और समर्पण के
भाव देखता तो उसके सामने असहाय सा महसूस करता। इधर परिवार के लोग जिन्हें इसने लंबी-चौड़ी आस बंधा दी थी वह भी जीना हराम किए हुए थे। रोज़ पैसों के लिए तक़ाज़ा करते और यह टाल जाता। लड़की से लिए पैसे खत्म हो गए थे और सभी का सब्र टूट रहा था। आखिर इसने थोड़ा प्रयास करके अपने मोह को दबा दिया और अंदर के जानवर को जिंदा किया। इस बीच इसका चेहरा उस लड़की को बहुत कुछ बताने लगा था। उसे इसका यह व्यवहार पति का गुस्सा
नहीं बल्कि एक प्लान का हिस्सा नज़र आता। इसकी आंखो की गहराई में प्यार नहीं बल्कि दिन भर चलने वाली जोड़-तोड़ दिखती। कई लोग दबे-छिपे तरीके से उसे सावधान भी कर चुके थे। कुल मिलकर उस पर संकट का समय सामने था और इन सभी तरीकों से ईश्वर मानो उसकी मदद कर रहे थे। कमजोर वह कभी नहीं थी, बस समर्पण भाव के कारण सब सह रही थी। वह समर्पण एक रिश्ते के प्रति था और यह रिश्ता नहीं एक छल है यह वह अब समझ चुकी थी। इस बार जब इसने उस पर हमला किया तो उसने प्रतिरोध किया।
इसके और खतरनाक होते इरादे भांपकर वह इसके चंगुल से किसी प्रकार भाग गयी। ईश्वर
ने भी उसकी मदद की और वह इसकी पहुँच से दूर हो गयी। यह किस्सा अब शहर में हर किसी की
ज़बान पर था। जिसने भी उस लड़की को उस अधमरी हालत में देखा था वह इससे नाराज़ था।
जिसके आगे यह रोता वह इसे झिड़ककर भगा देता। यह बहुत दुखी रहने लगा। इसे अब भी आस थी कि वह लड़की बहुत भोली है। थोड़ा मनाएगा तो फिर चली आएगी। पहले ऐसा करके
देख चुका था। इसने इस बार भी उसे मनाया, डराया, धमकाया पर उस पर किसी बात या धमकी कोई असर नहीं हुआ। यह उसका बचाहुआ जीवन नरक बनाने पर तुला था। इसने उसे बदनाम करना शुरू कर दिया। उद्देश्य केवल एक ही था कि वह सारी दुनिया की नज़र में घृणा
का पात्र बन जाए और हारकर इसके पास लौट आए। वह सब सह गयी पर उसने इसे पलटकर नहीं देखा। इसके छल से वह एक मौत मर चुकी थी और जब दोबारा जिंदा हुई तो उसके नए जीवन में इसके लिए कोई जगह नहीं बची थी। मैंने पूछा, “क्या इसे कभी अपने किए का पछतावा नहीं हुआ?” उस देवी ने कहा, “बहुत हुआ। यह इस बात पर बहुत पछताया कि जिसके द्वारा करोड़ों कमा
सकता था उससे कुछ लाख ही वसूल पाया। इस बात पर बहुत पछताया कि आखिरी रात उसे भागते
समय दबोच क्यों नहीं लिया, बाहर क्यों निकालने दिया। इस बात पर
बहुत पछताया कि समय रहते सारी योजनाएँ पूरी क्यों न कर लीं। और इस बात पर भी
पछताया कि उसके जैसा साथी खो दिया। मैंने पहले ही बताया था कि उसके भोलेपन और समर्पण ने इस दरिंदे के मन के किसी कोने में कण भर मोह भी जगा दिया था। दिन के एक पहर इसे करोड़ों का नुकसान परेशान करता तो दूसरे पहर
उसके साथ बिताया समय। वह इसका खिलौना थी, साथी थी, मित्र थी, सहायक थी। यह घर-बाहर के हर काम के लिए उस पर निर्भर करने लगा था। कुल मिलाकर उसके जैसा न इसके जीवन में कोई था और न आने की उम्मीद ही थी। इसका यह मोह योजना का हिस्सा नहीं था सो परिवार भी इससे लगभग विरक्त हो गया। कुछ समय बाद इसे यह एहसास भी हुआ कि जैसे इसकी निष्ठा उस लड़की में नहीं उसके पैसे में थी, वैसे ही इसके परिवार की निष्ठा भी इसमें नहीं है। सबके अपने-2 स्वार्थ और साथी थे। यह निपट अकेला रह गया और कुछ समय बाद पागल हो गया। इस कथा को सुनकर मैं स्तब्ध सी बैठी रह गयी। कुछ समय बाद अपने को
संभालकर पूछा, “दीदी क्या इसका कोई इलाज नहीं है?” अचानक पागल फिर चिल्ला पड़ा, “मैं ठग हूँ, मुझे फांसी दे दो।” उसे अनदेखा कर वे बोलीं, “है क्यों नहीं, बिलकुल है। पागल ज़रूर हो गया है पर आज भी यह बिना सिर-पैर की चालें सोचता है जिन पर लोग
हंसकर रह जाते हैं। जिस दिन ये यह सब छोडकर, अकेले बंद कमरे में बैठकर, पवित्र मन से, पश्चाताप के आँसू बहाकर कहेगा कि मैंने उस लड़की के साथ बहुत बुरा किया, मैं उसका अपराधी
हूँ, उस दिन भगवान इसे क्षमा कर देंगे मेरा विश्वास है।” पागल हो चुका
व्यक्ति क्या पश्चाताप करेगा, सोचती हुई मैं ठंडी सांस ले उठ खड़ी हुई।
दोनों हाथ जोड़ गंगा जी से उस चालाक/पागल/अपराधी/प्रेमी/ठग/पति (पूरे वार्तालाप में नाम नहीं पूछ पायी उसका) के लिए प्रार्थना की और प्रणाम कर चली आई।
uff..kafi dardnaak kahani hai...ye vyakti apradhi hai..bhagwan ise sahi saja de raha hai...
ReplyDeletekahani nahi apne sath gati asli ghatna hai
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