Monday, December 10, 2012

क्या आप अपनी ज़िन्दगी किसी से बदलना चाहेंगे?



क्या कभी आपका मन किया कि काश! अपनी बीती ज़िन्दगी के किसी हिस्से का अस्तित्व मिटा देते? पूरी तरह समझ आने से पहले मुझे यह ख्याल अक्सर आया करता था दसवीं तक एल्ज़ेब्रा मुझे बहुत प्रिय था, पर एन पेपर के दिन बहुत तगड़ा ज़ुकाम और बुखार हुआ और मेरे गणित में काफी कम नंबर आये बहुत बार मन होता था कि काश! वो समय फिर से वापस आ जाए और मैं जाकर अपने नंबर ठीक कर लूँ आज यह ख्याल हास्यास्पद लगता है, पर विद्यार्थी जीवन में अंकतालिका ही तो सबसे बड़ी उपलब्धि होती है धीरे-धीरे समझ विकसित हुई और मेरे लिए उन नंबरों का कोई मतलब नहीं रहा
हर बड़ी होती लड़की की तरह मुझे भी खुद को आईने में निहारना पसंद था कभी अपनी नाक मोटी लगती और कभी छोटे कद पर गुस्सा आता अक्सर लगता, काश! मेरी लम्बाई फलां जैसी होती या मेरे बाल उस लड़की जितने लम्बे होते एक दिन भाई ने बैठाकर डिस्कवरी पर आ रहा एक कार्यक्रम दिखाया वह चेहरों की बनावट पर एक विस्तृत रिपोर्ट थी कंप्यूटर ग्राफिक्स से विश्व सुंदरियों के खूबसूरत नाकनक्श को मिलाकर एक चेहरा बनाया गया था जिन आँखों पर, जिस नाक पर, जिन होंठों पर, जिन भवों के बांकपन पर लाखों लोग मरते थे वे सब इस चेहरे में शामिल होकर कार्टून से भी अधिक हास्यास्पद चित्र बना रहे थे उस दिन दिमाग से सारे वहम निकल गए और पता चल गया कि जो जहाँ है, वहीँ सही है
घर में बचपन से ही संघ का वातावरण रहा था सो कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने की सोचना भी अपराध था बाकी स्कूलों में अंग्रेजी प्रचलित नहीं थी स्कूल से बाहर निकलकर देखा तो पता चला कि, दिल्ली जैसे शहर में इंग्लिश के बिना जीना कितना मुश्किल है तब एक बार फिर बहुत पछतावा हुआ समझदारी बढ़ गयी थी, सो यह पछतावा कुछ ही हफ्ते रहा एक इंग्लिश का अखबार रोज़ पढ़ा, एक तमिल सहेली के आगे अपनी इगो को समर्पित किया और लगभग एक-दो महीने में ही अपनी इस कमी पर विजय पा ली एक सरकारी स्कूल की लड़की को धाराप्रवाह अमेरिकन इंग्लिश बोलते देख कर हर कोई स्तब्ध रह जाता लोग कभी-कभी हंसी में कह भी देते, “अक्सर जिनकी इंग्लिश अच्छी होती है उनकी हिंदी की टांग टूटी होती है, जिनकी हिंदी अच्छी होती है उनकी इंग्लिश की टांग टूटी होती है, पर इसकी दोनों टांगे साबुत हैं” मेरे साथ के लड़के-लड़कियां हिंदी बोल-पढ़ तो लेते पर क्लिष्ट हिंदी और हिंदी के अंक नहीं पढ़ पाते सरकारी स्कूल में पढ़ने के कारण मैं हिंदी की गिनती जानती थी और संघ के पदाधिकारियों से पारिवारिक सम्बन्ध होने के कारण मुझे क्लिष्ट हिंदी भी अच्छे से समझ आती थी दोनों भाषाओँ पर पकड़ होने के कारण नागपुर कार्यालय में विदेशियों के आने पर उनसे वार्तालाप के लिए मुझे आगे कर दिया जाता और हिंदी पुस्तकों की स्क्रिप्ट रीडींग भी मेरे ही जिम्मे थी इस प्रकार पूरी ज़िन्दगी इस प्रकार के उदाहरणों से भरी पड़ी है, जहाँ एक ओर क्षणिक पछतावा है और दूसरी ओर एक अतिरिक्त गुण केवल मेरी ही नहीं, हम सबकी ज़िन्दगी इस प्रकार के उदाहरणों की भरमार है
ज़िन्दगी में बाद में भी कई ऐसे अवसर आये जब लगा कि यह कुछ गलत हो गया, कभी लगा यह बहुत गलत हो गया, पर हर गलत अपने साथ बहुत सा सही देकर गया आज मुझसे कोई सवाल करे कि आपकी ज़िन्दगी में ऐसा क्या है जिसे आप बदलना चाहती हैं तो मेरे पास कोई जवाब नहीं होगा मैं बहुत सोचकर भी ऐसा कुछ नहीं बता पाऊंगी जिसे बदलना चाहूँ आज ईश्वर पर जो दृढ़ विश्वास है उसका कारण भी  यही है कि मुझे छिछले तौर पर तो अपनी ज़िन्दगी में बहुत कुछ बुरा दिखेगा, पर गहन चिंतन के बाद कुछ भी गलत नहीं लगता जो बुरा हुआ वह बहुत कुछ अच्छा भी देकर गया हर धोखा समझदारी बढ़ाकर गया हर चोट कुछ और मज़बूत बना गयी अब अटूट विश्वास है कि ईश्वर मेरे साथ कुछ गलत कर ही नहीं सकते आज तक नहीं किया, आगे भी नहीं करेंगे जो कल बुरा लगता था आज अच्छा साबित हो रहा है इसी तरह जो आज बुरा लग रहा है, वह कल अच्छा साबित होगा मेरा हर आंसू, हर पीड़ा, हर दुःख उस कडवी गोली के समान है जो शरीर को निरोगी बनाती है, उस आग के समान है जो सोने को तपाकर कुंदन बनाती है मुझे अपनी ज़िन्दगी का एक क्षण भी नहीं बदलना, मैं संतुष्ट हूँ इससे हर क्षण ईश्वर का प्रसाद है और बहुत मीठा है

6 comments:

  1. हर क्षण ईश्वर का प्रसाद है और बहुत मीठा है।... yahi satya hai

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  2. आपकी लिखी प्रत्येक बात सत्य पूर्ण चित्रण दर्शाता और सन्देश देता हुआ होति है,

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  3. आपका लेख इतना अच्छा है की उसकी प्रशंसा भी नही कर सकता

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  4. achha likha hai

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